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जैसा चाहो वैसा करो
१ जो व्यवहार तुम्हें अपने लिए बुरा लगता है, दूसरों के प्रति
भी वैसा न करो। २ कोई वह करता है जो उसे नहीं करना चाहिए तो निश्चय ही
वह भोगेगा जो उसे नहीं भुगतना पड़ता। ३ जो देता है उसी को लेने का अधिकार है। इसी प्रकार जो
सेवा करता है, उसी को सेवा कराने का अधिकार है । ४ जगत् में दोष-गुण दोनों ही होते हैं। तुम दोष ही ढूंढने औस
देखने लगोगे तो तुम्हें दोष ही मिलेंगे। तुम अपने मन में जैसा कुछ सोचते-विचारते हो, वैसा ही तुम्हें प्रतिफल प्राप्त होता है । जो दूसरों के प्रति घृणा, भय, द्वेष, वैर और डाह रखते हैं, उन्हें दूसरों से ये ही वस्तुएं मिलती हैं। ५ जिस विषफल से तू भागना चाहता है, उसके बीज एक दिन
तेरी आत्मा ने बोए थे। फिर दूसरे पर रोष और दोष क्यों ? ६ यह आशा मत करो कि सब तुम्हारी ही बात मानें, तुम्हारे
ही मत का समर्थन करें, तुम्हारे ही आज्ञाकारी बनें और तुम्हारे प्रत्येक कार्य की प्रशंसा ही करें। जब तुम दूसरों के लिए ऐसा नहीं कर सकते, तब दूसरों से ऐसी आशा क्यों करते हो। करोगे तो निराशा, दुःख, अपमान-बोध और विपद् के सिवा और कुछ भी हाथ न लगेगा। ७ जो स्वयं कटु शब्द नहीं सुनना चाहता, उसे अपने मुंह से कटु
शब्द नहीं निकालना चाहिए। ८ जब तूं अपने को ही अपनी इच्छा के अनुकूल नहीं बना पाता
है तो दूसरों से अपनी इच्छानुसार बन जाने की आशा कैसे
रख सकता है ? जैसा चाहो वैसा करो
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