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________________ द्विकोण १ महानता की दो सीढ़ियां हैं-१. कड़वी बात का मीठा उत्तर देना । २. क्रोध के अवसर पर चुप रहना। २ मन को प्रसन्न रखने के दो उपाय हैं--१. जो कुछ हुआ सो ___ अच्छा। २. जो कुछ होगा सो अच्छा। ३ पाप के दो द्वार हैं-१. विलासिता २. दरिद्रता। ४ दो पर अमल करो-१. कहो वह जो सच्चा हो। २. करो वह जो अच्छा हो। ५ आहार के पूरक तत्त्व दो हैं-१. उपवास । २. प्रसन्नता । ६ दो बातें कभी नहीं भुलानी चाहिए-१. हमारे प्रति दूसरे का किया हुआ उपकार । २. अपने द्वारा किया हुआ दूसरे का अपकार। ७ बार-बार जन्म होने में दो ही प्रधान हेतु हैं-१. पाप । २. ऋण। ८ हमारे आनंद और सुख को लीलने वाले दो तत्त्व हैं-भय और चिन्ता। ६.दो याद रखने योग्य हैं-१. कर्त्तव्य । २. मरण । १० दो भूल जाने योग्य हैं-वह नेकी जो अपने द्वारा किसी के साथ बन पड़ी और वह बदी जो दूसरे ने अपने साथ की। ११ बुद्धिमान बनने के दो उपाय-१. थोड़ा पढ़ना, अधिक सोचना । २. थोड़ा बोलना, अधिक सुनना।। १२ निर्बाध आनंद की दो बाधाएं हैं-१. मानसिक तनाव । २. प्रमाद . १३ ब्रह्माण्ड में सबसे सुन्दर दो वस्तुएं हैं-१. हमारे ऊपर तारों जड़ा आसमान । २. हमारे अंदर कर्तव्य की भावनाएं । १४ भले-बुरे, सत्य-असत्य, पाप-पुण्य के साक्षी इस दुनिया में केवल दो ही होते हैं.-१. अपनी आत्मा। २. सर्वसाक्षी परमात्मा। १५ परिश्रम और मिताहार-ये दोनों धरती के अश्विनीकुमार हैं, सबसे बड़े वैद्य हैं। योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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