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________________ सहना आत्म धर्म है १ जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों को समता से सह लेता है उसके मन में कभी गांठें नहीं घुलतीं। वह न प्रियता के लिए अकुलाता है और न अप्रियता से कतराता है । सच तो यह है कि उसे जीवन की कठिन से कठिन घड़ियां भी कठिन प्रतीत नहीं होती। वह सहजता से उन्हें पार कर देता है, मात्र इसी प्रशस्त चिन्तन से कि-'यह कष्ट चिरकाल तक ठहरने वाला नहीं है।' २ ऐसे मनुष्य के लिए प्रत्येक अवस्था आनंदमयी होती है, जो उसे शांतिपूर्वक सह लेता है। ३ सहन करना बड़प्पन लाता है, सहन न करना छुटपन । ४ सहनशीलता जिसमें नहीं है, वह शीघ्र टूट जाता है और जिसने सहनशीलता के कवच को ओढ़ लिया है, जीवन में प्रतिक्षण पड़ती चोटें उसे और भी मजबूत कर जाती हैं । ५ जो अनुकलता-प्रतिकूलता को सहन करता है, वह निग्रेन्थ है। ६ कष्ट-सहिष्णुता के बिना जीवन में उदात्त धर्म की साधना नहीं की जा सकती। ७ मनोबल बढ़े बिना सहन करने की क्षमता नहीं बढ़ती। ८ सहिष्णता प्रज्वलित अग्नि है, लौ है, जिसके द्वारा जीवन आलोकित होता है। ६ निरन्तर थोड़े-थोड़े कष्टों को सहन करने का अभ्यास करने वाला व्यक्ति कष्टों के पहाड़ को अपनी भुजाओं पर झेलने में सक्षम हो जाता है। १० जो दुःखों को सहन नहीं कर सकते उन्हें सुख भोगने का अधिकार नहीं होता। ११ कष्ट के लिए कष्ट नहीं सहे जाते अपितु उद्देश्य बड़ा होता है तो उसके लिए वे सह लिए जाते हैं। १२ जो सहन करना नहीं जानता, वह नेतृत्व नहीं कर सकता। सहना आत्म धर्म है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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