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________________ कर्तव्य पालन करने में मिठास है १ प्रत्येक कर्तव्य पवित्र है। २ कर्तव्य के प्रति कठोर रहो पर हृदय में सरल । अपने पर कठोरता बरतो पर मित्रों पर नहीं। ३ कर्त्तव्य-पालन करते समय शरीर को भी जाने दो। किन्तु शक्ति से बाहर कुछ उठा लेना कर्त्तव्य के प्रति राग होगा। ४ केवल एक ही कर्त्तव्य है और एक ही सुरक्षित मार्ग है और वह है ठीक होने का प्रयत्न करना और जो कुछ तुम ठीक समझते हो उसे करने यो कहने में भय न करना। ५ सहयोग देना आभार नहीं, कर्तव्य-पालन है। ६ जो कर्त्तव्य हमारे निकटतम हैं, जो कार्य अभी हमारे हाथों में है, उसको सुचारू रूप से सम्पन्न करने से हमारी कार्य शक्ति बढती है, और इस प्रकार क्रमशः अपनी शक्ति बढ़ाते हुए हम एक ऐसी अवस्था की भी प्राप्ति कर सकते हैं जब हमें जीवन और समाज के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित कार्यों को करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। ७ तुम जिसकी सेवा करते हो उस पर अहसान मत जताओ। उपकार समझकर नहीं वरन् कर्त्तव्य समझकर सेवा करो। ८ असंतुष्ट व्यक्ति के लिए सारे कर्त्तव्य नीरस हो जाते हैं। ६ माता-पिता जिन्होंने स्वयं कष्ट पाकर तुम्हारी परवरिश की और योग्य बनाया, उनका एहसान हमेशा याद रखो और अपने कर्तव्य का पालन करो। १० कर्त्तव्य कीजिए दूसरों के काम आइए । त्याग कीजिए आपको अधिकार स्वतः मिलते जायेंगे। ११ सेवाधर्म अत्यन्त गंभीर है। योगियों के लिए भी अगम्य है। कर्तव्य पालन करने में मिठास है १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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