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सुलभ ही दुर्लभ
१ हजार संपदाएं मिल सकती हैं, हजार प्रकार के वैभव मिल
सकते हैं किन्तु शुद्ध-दृष्टि का मिलना दुर्लभ है। २ छह स्थान मनुष्य के लिए सुलभ नहीं होते-१. मनुष्य-भव ।
२. आर्यक्षेत्र में जन्म । ३. सुकुल में उत्पन्न होना।। ४. केवली प्रज्ञप्त धर्म का सुनना । ५. सुने हुए धर्म पर श्रद्धा। ६. श्रद्धित, प्रतीत, रोचित धर्म का सम्यक् कायस्पर्श (आचरण) ३ मानव-जीवन की पुनः प्राप्ति सुलभ नहीं है। ४ तम काम-भोग नहीं छोड़ सकते तो कम से कम अनार्य कर्म
छोड़कर आर्य कर्म तो करो। ५ हमारी चेतना ऐसी है जो या तो बदलती नहीं और बदल
जाती है तो फिर उसे बदलना कठिन होता है। ६ देना दुर्लभ है, लेना सरल है। ७ बहुत अच्छे सुघटित भवनों से भी पानी चू जाता है । बिल्कुल
निश्छिद्र स्थिति दुर्लभ है। ८ निर्धन व्यक्ति जो भी खाये, हमेशा अच्छा ही भोजन करते हैं। क्योंकि वे भूख से खाते हैं। स्वाद को पैदा करने वाली वह भूख धनिकों को दुर्लभ है। ६ भाग्य में लिखा हो तो असंभव भी संभव हो जाता है। १० देवता में इतनी ताकत है कि वह मनुष्य के मस्तिष्क को काट
कर चरा कर देता है और पुनः जिला भी देता है पर इन्द्रिय
संयम की ताकत उनके लिए दुर्लभ है। ११ स्वाद सबसे दुर्जेय है। जिसने स्वाद को जीत लिया, उसने
सभी रसों पर विजय प्राप्त कर ली।
सुलभ ही दुर्लभ
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