________________
रचनाओं को सुनकर मौन धारण कर लेता है, दोषों को ढकता है और स्वयं वैसे दोष नहीं करता-यह सब सज्जनों के
लक्षण हैं। १२ गुणों से युक्त व्यक्ति ही प्रिय होता है, रूप से युक्त व्यक्ति
नहीं । खुशबू से रहित सुन्दर फूल को भी कभी कोई ग्रहण
करने योग्य नहीं मानता। १३ जैसे रत्नों से भरा हुआ समुद्र सुशोभित होता है वैसे ही तप,
विनय, शील, दान आदि रूप रत्नों से भरा हुआ सुशील
मनुष्य सुशोभित होता है। १४ सदा शान्त रहें, वाचाल न हों। ज्ञानी पुरुषों के समीप रहकर
अर्थयुक्त आत्मार्थ साधक पदों को सीखें । निरर्थक बातों को
छोड़ें। १५ मित और दोषरहित वाणी सोच-विचारकर बोलने वाला
पुरुष सत्पुरुषों में प्रशंसा को प्राप्त होता है। १६ जो व्यवहार धर्म से अनुमोदित है और ज्ञानी पुरुषों ने जिसका
सदा आचरण किया है, उस व्यवहार का आचरण करने
वाला पुरुष कभी भी गर्हा-निन्दा को प्राप्त नहीं होता। १७ जो अपनी कमियों, बुराइयों को देखता रहे तो दूसरे को मजा
लेने का अवसर नहीं मिलता। १८ दूसरे की अच्छाइयों को सहन करना सीखो। १६ भलाई करके यदि उपकार की मांग हो तो वह प्रतिदान की
मांग भी बुराई है। २० वह आदमी वास्तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात
मुंह से नहीं निकालते। २१ अपने मन में हो या दुनियां के सामने-अपने बारे में अच्छा
ही हमेशा बोलिए । अपने प्रति भी उतने ही उदार रहिए, जितने दूसरों के प्रति होना चाहते हैं । २२ रोषपूर्ण विचार धारा को तुरन्त सुविचार में बदल लो, तुम्हें
शान्ति और आराम मिलेगा। २३ एक दिन भी पूर्णरूप से स्वस्थ रहकर जीने वाले के सामने __ सैंकड़ों राजाओं की तड़क-भड़क और शान नहीं के बराबर
.
योगक्षेम-सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org