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________________ मौन से बड़ा कोई मंदिर नहीं १ मौन से बड़ा कोई मन्दिर नहीं है। सत्य के सागर के लिए __ शून्य के अतिरिक्त और कोई नौका नहीं। २ जो मौन में बैठकर चारों तरफ के जगत के प्रति जागरूक हो जाता है, धीरे-धीरे उसके विचार अपने आप समाप्त हो जाते ३ मौन में अन्तःशक्ति को जगाने की क्षमता होती है। ४ चित्त शान्त हो जाय, मौन हो जाय तो शान्त और मौन चित्त में वैसे ही जीवन के सत्य झलक आते हैं जैसे शान्त झील में ऊपर का चांद दिखाई पड़ने लगता है। ५ आत्मा कोलाहल में व्यक्त नहीं होती, उसके लिए एकान्त, शान्ति और समाधि चाहिए। ६ क्रिया या प्रवृत्ति में तन्मय हो जाना ही मौन है, चुप है। ७ मौन उसी का नाम है जिसमें मन शान्त हो जाए। ८ मौन रहने से बहुत बड़ा लाभ है। ऐसा करने से आदमी बहुत-सी बुराईयों से बच जाता है। ९ जहां वाणी छानकर बोली जाती है, वहां विभूतियां दौड़ती हुई चली आती हैं। १० कटु और विद्वेष युक्त भाषण से तो मौन रहना अथवा मूक होना अधिक उपयुक्त है। ११ वाणी में संसार को न भरें, उसे हरि-स्मरण के लिए समर्पित करें। १२ अधिक बोलना अशुभ को निमंत्रण देना है। १३ वाणी से आदमी के अन्तःकरण की परीक्षा होती है। १४ कम बोलने वाले के पुण्याई बढ़ती है एवं बोलने में मधुरता पैदा होती है। १५ अल्पभाषी सर्वोत्तम मनुष्य है। १६ वाणी की शुद्धता के लिए निरवद्य वचन बोलें, निरवद्य वाणी बोलने वाले की वाणी पावरफुल बन जाती है। १७ आदमी की भाषा है--शब्दों में, परमात्मा की भाषा है मौन। योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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