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________________ मन की शान्ति का स्वाद लें १ मन की सच्ची शान्ति की जननी पवित्रता ही है । २ शान्तपद की प्राप्ति चाहने वाले मनुष्य को चाहिये कि वह योग्य और अत्यन्त ऋजु बने । उसकी बात सुन्दर, मृदु और विनीत हो । वह संतोषी हो, सहज पोष्य हो, अल्पकृत्य हो और सादा जीवन बिताने वाला हो । उसकी इन्द्रियां शांत हों । ३ शांति का प्रारम्भ वहां से है, जहां कि महत्त्वाकांक्षा का अंत होता है । ४ अगर कोई मनुष्य शुद्ध मन से बोलता या काम करता है, आनन्द उसके पीछे साये की तरह चलता है जो कि उससे कभी अलग नहीं होता । ५ शांति सदैव भीतर से फूटती है और भीतर ही समा जाती है | ६ मानसिक प्रसाद, स्वास्थ्य या आनन्द के लिए नए सिरे से कलहों में प्रवृत्त न हों और जो पुराने कलह हैं, कदाग्रह हैं, उनका उपशमन करो । ७ शान्त वह है जो अशान्ति की स्थिति में शान्त रह सके, वही सच्ची शान्ति है । ८ युद्ध और शान्ति का सृजन मनुष्य ने ही किया है । & केवल निर्वैर मन ही शान्ति पा सकता है । १० इच्छाओं को शान्त करने से नहीं अपितु उन्हें परिमित करने से शान्ति प्राप्त होती है । ११ अपने मन पर इतना शासन हो कि प्रिय वस्तु मन को हर्षित न कर सके, उसका वियोग मुस्कान छीन न सके । १२ जिस दिन कोई व्यक्ति उस स्थिति में पहुंच जाता है जहां वह न किसी को सुख पहुंचाता है, न किसी को दुःख । वहीं से व्यक्ति सब को शान्ति एवं आनन्द पहुंचाने का कारण बन जाता है । १३ अशांति के अवसर का पूरी तरह होना और वहां शांत होना ही शांति है । मन की शान्ति का स्वाद लें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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