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________________ ११ अपना जीवन लेने के लिए नहीं, देने के लिए है । १२ जीवन का एक रहस्य उसमें अच्छाई देखना है । १३ आत्मा जागती है तब दुःख दूर होता है । १४ धर्म, सत्य और तप- -यही जीवन की सारी सम्पत्ति है । १५ जीवन में जागृति स्वार्थ त्यागने से आती है । १६ मेरा जीवन ही मेरा संदेश है । १७ हम अपने जीवन के स्वामी स्वयं हैं । कोई दूसरा हमारे जीवन को सम्पन्न नहीं बना सकता । अपने जीवन का निर्माण हमें स्वयं करना होगा । १८ जीवन तो वही है पर दृष्टि भिन्न होने से सब कुछ बदल जाता है । दृष्टि भिन्न होने से फूल कांटे हो जाते हैं और कांटे फूल बन जाते हैं । १६ जीवन को विधायक आरोहण दो, निषेधात्मक पलायन नहीं । सफलता का स्वर्ण सूत्र यही है । २० जीवन में पग-पग पर जो गुत्थियां आती हैं, उन्हें सुलझाओ, तन्मय बनकर सुलझाओ किन्तु मस्तिष्क पर उनका भार मत ढोओ । २१ जीवन पुष्पों से आल्हादित रहस्यात्मक एक वास्तविकता है । इसका अत्यल्प प्रकटन भी सुन्दरतम है । २२ जीवन बहुत जटिल है । उसमें कोई बात कैसे घटित हो रही है यह कहना एकदम मुश्किल है। लेकिन इतना कहना निश्चित है कि जो घटना हो रही है उसके पीछे कारण होगा, चाहे वह ज्ञात हो, चाहे अज्ञात हो । २३ वासना वालों के लिए यह जीवन अतृप्ति का मन्दिर है, कामना और निराशा की कन्दरा है । भोगी के लिए दहकती हुई आग है । डरपोक के लिए पाप की गठरी है । ज्ञानियों के लिए बदलते हुए मूल्यों का बंडल है । विरक्तों के लिए सिकता की भांति नीरस है । ईश्वर भक्तों के लिए ईश्वर की ओर ले जाने वाला पथ है और योगी के लिए चित्त शुद्धि का उपाय है । २४ जीवन तो कोरा कागज है । हमारी लिखावट ही उसे सुन्दर या असुन्दर बनाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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