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१० आत्मा के प्रति करुणा व दया रखने वाले कम होते हैं । क्रोध
की अवस्था में आत्मा का ही अहित होता है। ११ दूसरे तुम्हारे संबंध में क्या सोचते हैं, इसकी अपेक्षा तुम्हारे
विषय में तुम्हारे अपने विचार अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। १२ भीतर रूग्णता हो और बाहर स्वस्थ दिखाई पडे तो किसी
भी क्षण दुर्घटना घटित हो सकती है । १३ तुम्हारे जीवन की फिल्म तो जन्म के पहले ही निश्चित हो
गई है । उसे साक्षीभाव से देखोगे तो सुखी रहोगे । कर्त्ताभाव
रखोगे तो दुःख उठाओगे। १४ जो व्यक्ति हर स्थिति में अपने आपको संतुलित रख सकता
है, वह साधक है।
योगक्षेम-सूत्र
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