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________________ कषाय मन की मादकता है १ जिससे कर्मों की कृषि लहलहाती है, वह कषाय है। इस कषाय के पकते ही सुख और दुःख रूपी फल निकल आते हैं । २ जिससे समता, शान्ति और सन्तुलन भंग होता है, टूटता है, वह कषाय है। ३ विकारों का गुप्त वातावरण स्वयं अपने में ही शरीर, मन और आत्मा को भारी बना देता है। ४ कषायोदय व्यक्ति की बातचीत क्रोध और अहं को पुष्ट बनाने वाली होगी। उसका कार्य कलाप कपट और लोभ से परिपूर्ण होगा। उसको शारीरिक गन्ध भी स्वार्थ से रहित नहीं हो पाती। उसके सपने भी ऐसे आयेंगे, जो उसे नींद में भी शान्त नहीं रहने देते हों। ५ शान्तता, विनम्रता, सरलता, निःस्पृहता की प्राप्ति ही कषाय मुक्ति का प्रतिफलित है। ६ क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा और चुगली करना-ये ताममिक वत्तियां हैं, तामसिक वत्ति वाला आदमी कभी शांत नहीं हो सकता। ७ जब कषाय सिंहासन पर होती है तब विवेक घर से बाहर होता है। ८ लोग अपना जीवन कषायों की सेवा में ही बिता देते हैं इसकी ___ अपेक्षा कि वे कषायों को अपने जीवन की सेवा में जोतें। ६ कषाय का अन्त पश्चात्ताप की शुरूआत है। १० जैसे कषाय रसप्रधान वस्तु (हरड़ आदि) के सेवन से अन्न रुचि कम होती है, वैसे ही कषाय-प्रधान जीवों में मोक्षाभिलाषा क्रमशः न्यून हो जाती है। कषाय मन की मादकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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