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१३ उत्तम धर्म से युक्त तिर्यंच भी उत्तम देव हो जाता है । उत्तम
धर्म से चांडाल भी सुरेन्द्र हो जाता है । १४ जीव के उत्तम धर्म के प्रभाव से अग्नि भी हिम हो जाती है,
सर्प भी उत्तम रत्नों की माला हो जाता है, देव भी किंकर
हो जाते हैं। १५ हमारे लिए उत्कृष्ट मंगल वही है जो परिणाम में सुंदर
हो। १६ हम धर्म को परम मंगल मानते हैं क्योंकि उसका परिणाम
सदैव सुन्दर होता है । १७ इस संसार में जन्म लेने वाले सभी लोग कुछ अमंगल और
कुछ मंगल प्रवृत्तियां लेकर ही आते हैं। लेकिन कुछ लोगों में शायद बहुत ही थोड़े लोगों में मंगल प्रवृत्तियां बहुत ही उत्कटता के साथ प्रकट होती हैं। पर्वत का शिखर जिस तरह आकाश को चूमने के लिए बढ़ता है, उसी तरह उनके मन हुआ करते हैं। उन्हें उदात्तता के प्रति चरम आकर्षण होता है। जिनके स्वभाव में यह विशेषता है, वह उत्कृष्ट मंगल
है।
१८ लौकिक दृष्टि से अक्षत, कंकूम, स्वस्तिक, दर्पण, जल-घट
आदि मंगल माने गये हैं किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से अहिंसा
और तप को परम मंगल माना है। १६ मंगल का अर्थ है जो अवरोध हमारे विरोध में खड़े हैं,
उन्हें अपने सहयोग में बदल देना अर्थात् विघ्न-बाधाओं पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेना।
योगक्षेम-सूत्र
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