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________________ नारी केवल मांसपिंड की संज्ञा नहीं है १ नारी केवल मांसपिंड की संज्ञा नहीं है । आदिमकाल से आज तक विकास पथ पर पुरुष का साथ देकर, उसकी यात्रा को सरल बनाकर, उसके अभिशापों को स्वयं झेलकर और अपने वरदानों से जीवन में अक्षय शक्ति भरकर मानवी ने जिस व्यक्तित्व चेतना और हृदय का विकास किया है, उसी का पर्याय नारी है । २ नारी पद्मिनी और मालती की माला के समान है । वह माता मातृभूमि - सी पवित्र है । वह पृथ्वी की भांति सर्वंसहा है । वह तिरस्कार और अपमान सहती है तथा उसके बदले में सेवा और प्यार करती है । ३ कौनसी ऊंचाई है जहां नारी चढ़ नहीं सकती । कौनसा ऐसा स्थान है जहां वह पहुंची नहीं । हजारों अपराध करो वह क्षमा कर देती है । जब किसी बात पर अड़ जाती है तो संसार की कोई शक्ति रोक नहीं सकती । ४ नर भाव है तो नारी भाषा है । पुरुष मस्तिष्क है तो नारी हृदय है । पुरुष स्वर है तो नारी संगीत है । पुरुष कौमुदीश है तो नारी कुमुदिनी है । दोनों हैं एक रथ के पहिये, एक पक्षी की दो पांखें, एक जीवन की दो आंखें और एक वृक्ष की दोशाखें । ५ ममता, समता और करुणा की त्रिवेणी में नारीत्व बहता है । ६ नारी एक ऐसी दुर्बलता है जो आशंसा के ऊंचे टीलों पर उभर सामने आती है । नारी एक ऐसी विवशता है जो विलासिता की फिसलन भरी राह में पड़ी तड़प रही है । नारी एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिसमें सृजन की चेतना सुषुप्त सी रहती है । नारी एक ऐसी आभा है जो हजारों-हजारों नारी केवल मांसपिंड की संज्ञा नहीं है Jain Education International For Private & Personal Use Only १६१ www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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