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________________ ८ घर में अतिथि की भांति रहो, कुछ भी अपना मत समझो । सेवा कराने में संकोच करो, डर-डरकर व्यवहार करो । सबका हित चाहो । किसी को दुःख न पहुंच जाए, इस बात का ध्यान रखो। ममता मत बढ़ाओ । अतिथि को घर से चले ही जाना है, इस बात को याद रखो । I & जिससे विराग उत्पन्न होता है, उसका आदरपूर्वक आचरण करना चाहिए । १० जिसके ऊपर व्यक्तिगत पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ जितना हल्का होगा वह उतना ही अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकेगा ।. ११ अपने काम को चांद-सूरज के काम की तरह निःस्वार्थ बना दो, तभी सफलता मिलेगी । १२ कार्य करते हुए अन्तर् को दूषित - मलिन मत करो । इन्द्रियां अपना काम करती हैं, करने दो, उनके कार्यों का मानसिक लिप्सा से भोग मत करो, किन्तु उपयोग करो । यह निष्काम आत्म-साधना ही सर्वोच्च साधना है । १६० Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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