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________________ पहलुओं से दीप्त हो रही है । युगव्यापी प्रत्येक समस्या को नारी एक ऐसी प्रज्ञा है जो समाधान दे सकती है और नारी एक ऐसा पुरुषार्थ है जो असफलता के बीहड़ जंगल में सफलता के मोहक सुमन खिला सकती है । ७ आध्यात्मिक जीवन में प्रत्येक स्त्री एक मां का पार्ट अदा कर सकती है । मातृत्व नारी का एक स्वतंत्र अस्तित्व है । वह जगत् जननी बनकर समस्त प्राणियों के लिए प्रेम, करुणा, वात्सल्य व संरक्षण देने में समर्थ हो सकती है । ८ एक युवती के लिए अपने पति की केवल पत्नी बनना काफी नहीं है । उसे तो उसकी सखी, उसकी बहन, उसकी कन्या - यही क्यों मौका आने पर उसकी मां भी बनना पड़ता है । १६२ 2 स्त्री जगत् की एक पवित्र ज्योति है, वह पुरुष के लिए जीवनसुधा है । लाभ उसका स्वभाव है, प्रदान उसका धर्म, सहनशीलता उसका व्रत और प्रेम उसका जीवन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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