SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने आप से लड़ो, दूसरों से लड़ने से क्या ? १ परिस्थिति खराब नहीं है, हमारा मन खराब है । हमारे मन को अनुशासन की ठीक प्रकार से शिक्षा नहीं मिली है । इस विकराल और भयंकर मन के साथ युद्ध करें । खराब परिस्थितियों के विरुद्ध शिकायत न करें । प्रथम अपने मन को शिक्षित करें । २ वही लड़ाई सफल होती है जिसमें एक तरफ आग दूसरी तरफ पानी, एक तरफ आक्रोश एवं दूसरी तरफ मौन हो । ३ दूसरों को पराजित करने का एक ही उपाय है-अपने आपको शान्त रखना । ४ युद्ध वस्तुतः व्यक्ति के अन्दर होता है । ५ सबसे कठिन है -- अपने दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखना । ६ ज्ञाता-द्रष्टाभाव आत्मयुद्ध का एक तरीका है । ७ बुराई से बचाव करना अपने आप से लड़ना है । ८ युद्ध का क्षण भाग्य से मिलता है, वह युद्ध आत्मयुद्ध है । जिसने अपने आपको वश में कर लिया उसकी जीत को कोई भी हार में नहीं बदल सकता । १० आत्मा के हित और अहित के बीज स्वयं में हैं, दूसरे केवल निमित्त हैं । ११ दुनियां गलती करती है, गलतियों के बारे में सुनती है लेकिन सबक कभी सीखती नहीं । हर आदमी जिन्दगी के अन्तिम मोड़ पर कुछ सयाना हो जाया करता है, लेकिन यह समझ - दारी दूसरों की ठोकरों से नहीं, बल्कि उसके अपने जख्मों से आया करती है । १२ आन्तरिक धरातल पर युद्ध आत्मभूमि तथा उसका साधन जागरूकता है । अपने आपसे लड़ो, दूसरों से लड़ने से क्या ? Jain Education International For Private & Personal Use Only १४७ www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy