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११ जो व्यक्ति अपने आपको देखने में जागरूक नहीं होगा, वह
दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर सकता। १२ पदार्थ निरपेक्ष तृप्ति का आनन्द वही ले सकता है जो भीतर
में जीना जानता है। १३ मनुष्य का व्यवहार ही वह दर्पण है, जिसमें उसका व्यक्तित्व
भलीभांति देखा जा सकता है। १४ आदमी जब अन्दर से खाली होता है तो बाहरी वैभव उसके
खालीपन को भर नहीं पाता।
योगक्षेम-सूत्र
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