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रहो भीतर में, जीओ
द्र
१ युगीन परिस्थितियों का समाधान है—रहो भीतर में, जीओ व्यवहार में
।
२ कभी अपने आपको वैसा प्रकट करने का प्रयत्न न करें जैसे कि हम वास्तव में नहीं हैं ।
३ हम आनन्द का अनुभव करने की अपेक्षा दूसरों को दिखाने का प्रयास अधिक करते हैं कि हम आनन्द में हैं ।
व्यवहार
४ हम 'पर' में ज्यादा उलझे रहते हैं, यहां तक कि 'स्व' को भी पर में खोजते हैं।
में
५ मनुष्य के विकास और आध्यात्मिकता का प्रमाण उसके व्यावहारिक जीवन से ही मिल सकता है ।
६ सम्बन्धों की इस दुनियां में कोई किसी का नहीं है । यदि कोई किसी का होता तो कोई किसी को छोड़कर नहीं
जाता ।
७ अज्ञानी के लिए यह सारा भरा हुआ है । ज्ञानी के समस्याओं से शून्य है । संसार में हर किसी को खुश रखने के लिए ही जो जीता है, वह बेवकूफ बनकर रहता है। संसार की कोई निर्धारित पालिसी ही नहीं है, जिसका अनुगमन किया जा सके ।।
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संसार दुःखमय है, समस्याओं से लिए यह संसार आनन्दमय है,
जब मन विषयों की तरफ जाता है, वह सांसारिक जीवन है । जब मन अन्दर की तरफ जाता है, वह आध्यात्मिक जीवन है ।
१० मनुष्य के जीवन का धर्म एक है, दो नहीं हो सकता । और वह धर्म कौन-सा ? अन्दर जाना सीखो और अन्दर रहना सीखो, अन्दर और बाहर दोनों को मिलाना सीखो ।
जीओ भीतर में, रहो व्यवहार मैं
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