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________________ प्रभु का दास कभी उदास नहीं होता १ कमजोरी से भाग सकना असंभव है। या तो हम उसे खतम कर दें या वह हमें खतम कर देगी। यदि यह सच है तो हम अभी इसी वक्त उसे खतम करने में क्यों नहीं जुट जाते ? २ समय उन्हीं को पूजता है जो नये स्तम्भों की नींव रखते हैं और प्रतिकूल हवाओं के सहारे तैरकर आगे बढ़ते हैं । ३ कर्मशील व्यक्ति प्रायः उदास नहीं रहते क्योंकि कर्मशीलता __ और गमगीनी साथ-साथ नहीं रह सकती। ४ प्रतिक ल परिस्थिति में हम जड़ न हों। उछलकर नई जमीन पर आ जाएं, नए उद्योग करें। नई संभावनाएं खोजें, नए सपने लें और नए प्रयोग करें। ५ विफलता सफलता की ही सीढी है। कभी भी निराश मत बनो। ए वीर बढ़ते चलो ! ६ दुःख के भीष्म ग्रीष्म में ही मानव में माधुर्य आता है। ७ सफल व्यक्ति वह है जो अपने जीवन में अनुकूल परिस्थितियों को निर्मित करता है अथवा वह प्रत्येक अवसर को अपने अनुकूल बना लेता है। ८ जिन्दगी को वरदान बनाओ। सदा प्रसन्न रहो, मुस्कराओ। ६ वही सच्चा साहसी है जो कभी निराश नहीं होता। १० अचानक ही दिल और दिमाग पर ढेर सारा बोझ मानसिक शान्ति को उथल-पुथल करने लगे तो उस बोझ को किसी के साथ बांट लेना चाहिये। ११ नेगेटिव दृष्टिकोण निराशा का बहुत बड़ा आघार है। योगक्षेम-सूत्र १२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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