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________________ १८ प्रशंसनीय काम करके आत्म-प्रशंसा की मादकता में न छकने वाले व्यक्ति तपस्वी एवं महान् होते हैं । १६ जीवन का प्रत्येक क्षण एक अवसर है। क्षण-प्रेक्षा करें कि इस क्षण मैं भीतर हं या बाहर, शान्त हूं या अशान्त किस क्षण में कैसे भाव आ रहे हैं--देखें। हर क्षण के प्रति जागने वाला व्यक्ति निश्चित सफल होता है। २० चिथड़े का भी अपमान मत करो, उसने भी किसी की लाज रखी थी। २१ समस्या का सागर तैरने के लिए धैर्य, साहस एवं मस्तिष्क के संतुलन की अपेक्षा होती है। २२ कोई समय बोलने और काम करने का होता है तो कभी मौन एवं अकर्मण्यता धारण करनी पड़ती है। २३ कितना मर्माहत होता है वह क्षण जब सागर के किनारे खड़ा आदमी लहरों को छ न पाये, अक्षय-कोष का स्वामी होकर भी तिजोरी खोल न सके। २४ हमारा अहंकार ही है, जिससे हमें अपनी आलोचना सुनकर दुःख होता है। २५ न तू है, न मैं हूं, न यह लोक है, फिर शोक किसलिए? २६ हर वस्तु में संगीत है, यदि मनुष्य उसे सुन सके। २७ वही सफल होता है जिसका काम उसे निरंतर आनंद देता रहता है। २८ मेहनत से शरीर बलवान होता है और कठिनाई से मन । २६ ठीक ढंग से उचित समय पर किया हुआ विश्राम फटे कपड़े में समय पर टांका लगाने जैसा है। विषय परिवर्तन से, खेलकूद से व हंसने से विश्राम होता है। निद्रा से भी अच्छा विश्राम होता है। ३० बहुत अधिक विश्राम स्वयं दर्द बन जाता है। ३१ विश्राम में भी उद्यम की गति है। शान्त समुद्र की तरंगें भी गतिहीन नहीं होती। ३२ जो खुद निर्विकार, निर्भय और सुन्दर है, वह भला बाह्य पदार्थों से स्वयं को विकृत क्यों करेगा ? ३३ मानव जीवन ! तूं इतना क्षणभंगुर है पर तेरी कल्पनाएं कितनी दीर्घायु ! ३४ दूसरों को धमकाना अपनी कायरता प्रकट करना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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