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________________ योगक्षेम-सूत्र १ मैं अपने भाग्य का निर्माता आप हूं। अपनी परिस्थितियों को प्रयत्नपूर्वक बदल सकता हूं। २ अनासक्ति का विकास हो, ममत्व का विलीनीकरण हो। ३ सामुदायिक जीवन में भी एकाकीपन की अनुभूति हो। ४ मैं अविनाशी, एकाकी और कर्ममल से रहित विशुद्ध आत्मा ५ बिना देखे कोई निर्णय मत करना। ६ निश्चय करो आज से मुझे नया पाप नहीं करना है । ७ भार नहीं, उपयोगी बनकर जीओ। ८ औरों को अपनाओ पर अधीन मत बनाओ। ६ लोक कल्याण की वृत्ति ही भगवान् की श्रेष्ठ आराधना है। १० गुरुजनों की अवज्ञा मत करो। ११ अपनी परिक्रमा ही सफलता का सूत्र है । १२ समाधि तथा आध्यात्मिक सुख में संस्थित बनें । १३ मन की शान्ति का स्वाद लें। १४ भारहीनता का अनुभव करें। १५ आनन्द हमारे भीतर है। १६ मेहनत बहुत श्रेष्ठ और पवित्र कार्य है । १७ अपने प्रति संतोष प्रकट करो। १८ योगक्षेम की पहली शर्त-अच्छाई को पाने का संकल्प जागृत हो। योगक्षेम-सूत्र ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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