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________________ मौत हर व्यक्ति को साधक बना देती है १ मृत्यु जीवन से उतनी ही सम्बन्धित है जितना जन्म । जन्म या जीवन का प्रभात । मृत्यु याने जीवन की शाम । २ मृत्यु से अधिक सुन्दर कोई और घटना नहीं हो सकती । ३ मृत्यु में आतंक नहीं होता बल्कि मृत्यु तो एक प्रसन्नपूर्ण निद्रा है जिसके पश्चात् जागरण का आगमन होता है । ४ मृत्यु से नया जीवन मिलता है । जिससे पुराना शरीर नया बनता हो, उस मृत्यु से डरना क्या ? ५ मृत्यु की घड़ियों में भी मन के उद्गार शान्त नहीं हुए हैं तो इस अवस्था में मृत्यु सुंदर नहीं हो सकती । ६ जो अपनी अच्छी मौत के प्रति सावधान है, वह अवश्य अच्छा जीवन जियेगा । ७ मृत्यु एक सुनिश्चित घटना है, वह होनी है जो होकर ही रहेगी । मनुष्य के वश में बस इतना ही है कि वह इस घटना को भव्य और गरिमायुक्त, श्रेष्ठ और शुभप्रद बना सके । अन्यथा अनिच्छा, अनुत्साह और अशान्ति के साथ ही सही, मरना तो पड़ेगा ही । तब फिर शानदार मौत ही क्यों न मरें ? जिसने जीवन को देखा, वह उलझ गया तथा जिसने मौत को देखा, वह पार हो गया । ६ सदा मृत्यु का स्मरण रहे तो दुष्कर्म बन भी न पड़ें। १० शरीर आदमी को छोड़ता है घटती । जिस दिन आदमी स्वयं दिन एक नयी घटना घटती है । ११ अपने जीवन में जिसने अशुभ कर्म शांति भंग की है, अपनी शान्ति के लिए वह आत्मा कभी भी शान्तिपूर्वक नहीं मर सकती है । मृत्यु ही किए हैं, दूसरों की दूसरों को रुलाया है, मौत हर व्यक्ति को साधक बना देती है ११३ Jain Education International तब कोई नयी घटना नहीं शरीर को छोड़ देता है, उस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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