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________________ सुख की राह १ अपने सामने लक्ष्य स्पष्ट रखें और उसे पाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहें। २ अपनी प्रसन्नता में लोगों को भागीदार बनाएं। ३ आप जिस दुनियां में हैं, उसे बेहतर बनाने का प्रयास करें। ४ दयालु बनें और प्रतिदिन जीवन में रस लेते रहें। ५ जब भी तबियत ढीली लगे, कुछ न खायें। ६ नाक भौंहें सिकोड़ने का जीवन में अवसर न आने दें। ७ प्रकृति के नियमों से तालमेल बनाये रखना सीखें। ८ अवसर के प्रति पूर्णतः सजग रहें। है जो अत्यावश्यक नहीं है, उसका परित्याग कर दें। १० समझ बूझकर खतरा मोल लें। ११ प्रतीक्षा में धीरज रखें। १२ सफलता के लिए जल्दबाजी न करें। १३ एक समय में एक ही काम करें। १४ थोड़ी-थोड़ी देर बाद शिथिलन लाते रहें। काम बंद करके थोड़ी देर बैठे । पर चाहे बैठे हों या खड़े अपने को तनावमुक्त बनाने का प्रयास करें। १५ विचारों और वातावरण में यौवन की झलक होनी चाहिए। १६ फुरसत के समय अपनी उन्नति के सूत्रों को संग्रह करें। १७ स्वास्थ्य और सुख की कामना हो तो ईश्वर में श्रद्धा रखिए, गहरी नींद सोइये। १८ खुले दिल से भूल स्वीकार करें। अपनी बात संक्षेप में कहें। मिताहारी बनें । सांस गहरी लें। मन से सेवा करें। हृदय से प्रार्थना करें। बड़ाई ईमानदारी से करें। सुख की राह १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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