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________________ ब्रह्मचर्य का पालन मानव-पर्याय में ही होता है १ ब्रह्मचर्य दो शब्दों ब्रह्म और चर्य के मेल से बना है। ब्रह्म का अर्थ होता है-उच्च चेतना और चर्य का मतलब होता हैअवस्थित होना। अतः ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ-उच्च चेतना में विचरण करना तथा कामवासनाओं से बचना व उसे नियंत्रित करना। २ मन, वाणी और शरीर से सम्पूर्ण संयम में रहने का नाम ही ब्रह्मचर्य है। ३ जिसे महर्षि मौन कहते हैं, वह भी ब्रह्मचर्य ही है । ४ ब्रह्मचर्य उत्तम बाण है जिससे हृदयस्थ वासना भेद दी जाती ५ ब्रह्मचारी को कभी दुःख प्राप्त नहीं होता, उसको सब प्राप्य ६ ब्रह्मचर्य शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए संजीवनी बूटी ७ ब्रह्मचारी को घी-दूधादि रसों का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि रस प्रायः उद्दीपक होते हैं। उद्दीप्त रस से युक्त पुरुष के पास कामवासनाएं वैसे ही चली आती हैं; जैसे स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष के पास पक्षीगण चले आते हैं। ८ ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा के लिए प्रभु-भक्ति, स्वाध्याय, खान पान शुद्धि तथा श्रृंगार त्याग आवश्यक है। ६ ब्रह्मचर्य अत्यन्त सुसज्जित रथ है जिसमें बैठकर मानन स्वर्ग में अनायास पहुंच जाता है । १० ब्रह्मचर्य से मंत्र विद्या शीघ्र सिद्ध हो जाती है। ओज, तेज ____ और कांति की वृद्धि होती है। निर्मल ब्रह्मचर्य के प्रभाव से योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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