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________________ चमड़ी का रंग, मिजाज का ढंग १ प्रसन्नचित्त मनःस्थिति ही सुदृढ़ स्वास्थ्य का सुदृढ़ आधार २ बहुत अधिक चिन्ता करने या किसी चिन्ता में घुलते रहने के कारण त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। डॉ० जार्ज पेगेट के अनुसार-फोड़े फुन्सियो रक्त विकार की अपेक्षा चिन्ता और तनाव के कारण ही अधिक होती हैं और रक्त विकार भी प्रायः मानसिक कारणों से ही उत्पन्न होता है। फेफड़े संबंधी रोगों का प्रमुख कारण लम्बे समय तक किसी मानसिक आघात को सहते रहना है। इतना ही नहीं पथरी और वक्षस्थल के कैंसर जैसे रोगों का कारण भी दिन रात चिन्ता में घुलते रहना है। ३ दीर्घकाल के संताप से रक्त संचार मन्द पड़ जाता है, चेहरा पीला, त्वचा शुष्क और आंखें गंदली हो जाती हैं। मनःक्षेत्र में जमा हुआ कोई विचार जब बहुत अधिक क्षुब्धता उत्पन्न करता है तब उसकी प्रतिक्रिया कम ज्यादा रूप में शरीर पर भी प्रकट होती है। कई बार तो यह प्रभाव इतना अधिक होता है कि मृत्यु तक हो जाती है । ४ मस्तिष्क का विचार-संस्थान उस नाड़ी जाल को प्रभावित करता है जो शरीर में गूंथा पड़ा है। अच्छे विचारों के उभरने से शरीर में स्वास्थ्यवर्धक और आरोग्य-वर्धक रस उत्पन्न होते हैं जो रक्त में मिलकर स्वास्थ्य पोषक रस उत्पन्न करते हैं । उसी प्रकार खराब विचार विष उत्पन्न करते हैं। ५ बेमन से लगातार मानसिक श्रम करते रहने के कारण चमड़ी पर खरोंच तथा अन्य त्वचा संबंधी बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। चमड़ी का रंग, मिजाज का ढंग ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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