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________________ सब कुछ कहे बिना रहा नहीं जाता १ सब कुछ कहना नहीं चाहिए, पचाना सीखना चाहिए। २ कितना कहो, कब कहो, कैसा कहो तथा कहां कहो—इस चतुष्कोण को जानने वाला विवेकी होता है। ३ वाणी तारक और मारक दोनों होती है-भाषा का सही उपयोग हो तो वह तारक बन जाती है। ४ जिसका हृदय खाली है वो ज्यादा बोलेगा। अपने को भरना है तो थोड़ा मौन करो। ५ बूढ़ा व्यक्ति ज्यादा बोलता है। ६ दूसरे को मर्म कहना अपने आपको बेचना है। ७ बहुत कम बोलकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। ८ छोटी नदियां आवाज करती हई बहती हैं और सागर बिना आवाज के बहता है, जो पूर्ण नहीं वह आवाज करता है, जो पूर्ण है वह शांत रहता है। ६ जिन्हें कहना कम से कम होता है, वह बोलते अधिक से ___ अधिक हैं। १० बिना अवसर के बोलना निरर्थक है। ११ जीभ से अधिक पाप करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में गंगा होता है। १२ मनुष्य असत्य बोल सकता है लेकिन पशु-पक्षी नहीं। १३ अधिक बोलना, जोर से बोला, अनावश्यक बोलना वाचिक हिंसा है। १४ विवेकी बिना पूछे न बोले, पूछने पर झठ न बोले। १५ ऐसी बात मत बोलो जिसके दो अर्थ निकलते हों। १६ तुम अपना मुंह और पर्स सावधानी से खोलो ताकि तुम्हारी सम्पत्ति और कीर्ति बढ़े और तुम यशस्वी और महान् बन सको। १७ व्यक्ति हास्य में, चपलता में अधिक बोलकर अपनी अनन्त पुण्याई को खो देता है। योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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