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८४ मनन और मूल्यांकन
होने पर नाभि से नीचे के अशुभ संस्थान मिट जाते हैं, नाभि से ऊपर के शुभ संस्थान निमित हो जाते हैं । इसी प्रकार सम्यक्दृष्टि के मिथ्यात्व अवस्था में चले जाने पर नाभि से ऊपर के शुभ सस्थान मिट जाते हैं और नाभि से नीचे के अशुभ संस्थान निर्मित हो जाते हैं।
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१. वही, १३ पृ० २९८ :
विहंगणाणीणमोहिणाणे सम्मत्तादिफलेण समुप्पण्णे सरडादि असुहसंठाणाणि फिट्टिदूण णाहीए उवरि संखादिसुहसंठाणाणि होत्ति त्ति घेतव्वं । एवमोहिणाणपच्छायदविहंगणाणीणं वि सुहसंठाणाणि फिट्टिदूणं असुहसंठाणाणि होति त्ति घेतव्वं ।
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