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८.२ मनन और मूल्यांकन
सभी अवयवों के माध्यम से होता है - शरीर के सभी अवयव करण बन जाते हैं, वह अनेक क्षेत्र अवधिज्ञान है । '
यद्यपि अवधिज्ञान की क्षमता सभी आत्म-प्रदेशों में प्रकट होती है, फिर भी शरीर का जो देश करण बनता है उसी के माध्यम से अवधिज्ञान प्रकट होता है । शरीर का जो भाग करणरूप में परिणत हो जाता है, वही अवधिज्ञान के प्रकट होने का माध्यम बन सकता है। नंदी सूत्र में भी सब अवयवों से जानने और किसी एक अवयव से जानने की चर्चा मिलती है ।
एकक्षेत्र अवधिज्ञान में शरीर का एक चैतन्य-केन्द्र भी जागृत हो सकता है तथा दो, तीन, चार, पांच आदि चैतन्य- केन्द्र भी एक साथ जागृत हो सकते हैं।
चैतन्य- केन्द्र अनेक संस्थान वाले होते हैं। जैसे इन्द्रियों का संस्थान प्रतिनियत होता है वैसे चैतन्य- केन्द्रों का संस्थान प्रतिनियत नहीं होता किन्तु करणरूप में परिणत शरीर- प्रदेश अनेक संस्थान वाले होते हैं । कुछ संस्थानों के नाम-निर्देश मिलते हैं । जैसे- श्रीवत्स, कलश, शंख, स्वस्तिक, नन्द्यावर्त आदि। धवलाकार ने आदि शब्द के द्वारा अन्य अनेक शुभ संस्थानों का निर्देश किया है' । तन्त्रशास्त्र
१. षट्खंडागम, पुस्तक १३, पृ० २६५ : जमोहिणाणं पडिणियदखेत्तं तमणेगक्खेत्तं णाम ।
२. नंदी, सूत्र २२ :
देवतित्थंकराय, ओहिस्सऽवाहिरा हुंति ।
पासंति सव्वओ खल, सेसा देसेण पासंति ॥
३. षट्खंडागम, पुस्तक, १३ पृ० २६७ :
णच एक्कस्स जीवस्स एक्कम्हि चेव पदेसे ओहिणाणकरणं होदि त्ति णियमो अत्थि, एंग-दो तिष्णि चतारि-पंच-छआदि खेत्ताण मेगजीवहि संखादिसुहसंठाणाणं कम्हि वि सभवादो ।
४. वही, पृ० २६६ :
वज्जिय सरीरसव्वावयवेस वद्रदि
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खेत्तदो ताव अणेयसंठाणसंठिदा ॥५७॥
५. वही, पृ० २६७ :
सिरिवच्छ - कलस - संख-सोत्थिय णंदावत्तादीणि संठाणाणि णादव्त्राणि भवंति ।
६. वही, पृ० २६७
एत्थ आदिसद्देण असि पि सुहसंठाणाणं गहणं कायव्वं ।
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