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१०. जैन साहित्य में चैतन्य-केन्द्र
प्रज्ञापना में अवधिज्ञान के दो प्रकार उपलब्ध हैं-देशावधि और सर्वावधि। नंदी में देशावधि, सर्वावधि का उल्लेख नहीं है, केवल परमावधि का उल्लेख मिलता है। गोमटसार में अवधिज्ञान के तीन प्रकार मिलते हैं-देशावधि, परमावधि और सर्वावधि' । __ नंदी में अवधिज्ञान के छह प्रकार किये गए हैं, उनमें पहला प्रकार अनुगामिक है। उसके दो प्रकार हैं----अंतगत और मध्यगत। यह विषय अन्य किसी भी उपलब्ध आगम में नहीं है। प्रतीत होता है कि देवद्धिगणी ने यह पूरा प्रकरण ज्ञानप्रवाद पूर्व से लिया था। इस दृष्टि से नन्दी सूत्र का मुख्य आधार ज्ञानप्रवादपूर्व हो सकता है। स्थानांग, समवायांग, भगवती आदि इसके आधार नहीं हो सकते। ज्ञानप्रवाद चौदह पूर्वो में पांचवां पूर्व है। उसकी विशाल ग्रंथ राशि में केवल ज्ञान का ही निरूपण है। ___ नंदी के इस प्रकरण से एक चिर जिज्ञासित प्रश्न का समाधान होता है। कहा जाता है कि तंत्रशास्त्र और हठयोग में चक्रों का निरूपण है, किंतु जैन साहित्य में उनका कोई निरूपण नहीं है। ध्यान की पद्धति छूट जाने के कारण इस प्रश्न का उत्तर खोजा भी नहीं गया। हरिभद्रसूरी, शुभचन्द्र, हेमचन्द्र आदि आचार्यों
१. प्रज्ञापना ३३३३३ । २. नन्दी सूत्र, १८, गा० २। ३. गोमटसार जीवकाण्ड, गाथा ३७३ :
भवपच्चइगो ओही, देसोही होदि परमसव्वोही।
गुणपच्चइगो णियमा, देसोही वि य गुणे होदि ॥ ४. नंदी, सूत्र है। ५. नंदी, सूत्र १०। ६. नंदी, चूणि पृ० ७५ :
__ पंचमं णाणप्पवादं ति, तम्मि मतिणाइपंचकस्स सप्रभेदं प्ररूवणा जम्हा कता तम्हा णाणप्पवादं । तम्मि पदपरिमाणं एका पदकोडी एक पदूणा।
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