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५८ मनन और मूल्यांकन
मनुष्य के जीवन की दो दिशाएं हैं। एक है--समाधि की दिशा और दूसरी है-असमाधि की दिशा। समाधि की दिशा भी हमारे ही प्रयत्न से स्पष्ट होती है और असमाधि की दिशा भी हमारे ही प्रयत्न से स्पष्ट होती है। समाधि के बिन्दु की खोज ने तीन बातें स्पष्ट कर दी१. ज्ञान की असमाधि मिट सकती है, ज्ञान की समाधि उपलब्ध हो
सकती है। २. सख की असमाधि मिट सकती है, सुख की समाधि उपलब्ध हो सकती है। ३. शक्ति का व्यवधान मिट सकता है, शक्ति की स्फुरणा हो सकती है।
इस खोज के बाद उन मनीषी साधकों ने अपने उपलब्ध सत्यों का प्रदिपादन किया। वे सत्य अनेक भाषाओं और अनेक पद्धतियों में, रूपक में या स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त हुए हैं। भारतीय अनुभव-शास्त्र में जो अनुभव प्रतिपादित हुए हैं उनमें पतंजलि का योगदर्शन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।' योगशास्त्र को यदि हम योगशास्त्र के रूप में ही देखेंगे तो पूरा ज्ञान नहीं होगा। यदि बौद्ध, जैन, सांख्य और उपनिषद्-इन चारों के संदर्भ में पतंजलि के योगसूत्र को पढ़ते हैं तो उसका पूरा हार्द समझ में आ जाता है । यह योगसूत्र श्रमण-परम्परा का ग्रंथ है। यह सांख्य-दर्शन का ग्रन्थ है, सांख्य-दर्शन की साधना-पद्धति का ग्रंन्थ है । जिस युग में यह ग्रन्थ रचा गया, उस युग में सांख्य-दर्शन वैदिक नहीं था।. वह श्रमण-परम्परा का दर्शन था। परिव्राजकों का दर्शन था। उत्तरकाल में इसका अर्द्धवैदिकीकरण हुआ और धीरे-धीरे वैदिकीकरण हो गया। आज वह वैदिक दर्शन माना जाता है । यथार्थ में यह श्रमण-परंपरा का ग्रन्थ है । इसके विस्तार में मैं नहीं जाऊंगा, किन्तु इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि इसको समझने के लिए. जैन और बौद्ध साहित्य का अध्ययन नितान्त जरूरी है। जैन और बौद्ध परम्परा ने 'समाहि' (समाधि) शब्द का प्रयोग किया है। दोनों की साधना-पद्धति का यह महत्त्वपूर्ण शब्द था।
एक है समाधि का जगत् और एक है असमाधि का जगत् । असमाधि का जगत् समाधानशून्य जगत् है। वहां न इन्द्रियों का समाधान है, न मन का समाधान है और न चित्त का समाधान है। दूसरा समाधि का जगत् है । वहां इन्द्रिय, मन और चित्त का समाधान है। समाधि शब्द व्यापक था। सारी साधना इसमें गर्भित थी। यह साधना का प्रतीक-शब्द था। इसके बाद इस अर्थ का वाचक कोई शब्द प्रचलित नहीं हुआ। पतंजलि ने 'योग' शब्द का प्रयोग किया। ऐसा नहीं है कि योग शब्द इससे पूर्व प्रचलित नहीं था, किन्तु समाधि के अर्थ में योग शब्द का प्रचलन पतंजलि ने किया। पतंजलि ने कहा, योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।। योग का अर्थ है-समाधि । चित्तवृत्ति का निरोध अर्थात् समाधि । योग, और समाधि-दोनों शब्द एकार्थक हैं। योग शब्द 'युज् समाधौ' धातु से बना है।
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