________________
५६ मनन और मूल्यांकन
o
कर्म-परमाणुओं की चंचलता से दुःख होता है । संस्कारों की चंचलता से दुख होता है।
ये सारे असंयम के साधन हैं । दुःख का निरोध इनके प्रतिपक्ष से होता है• दुःख का निरोध होता है मन की अचंचलता से ।
०
दुःख का निरोध होता है वाणी की अचंचलता से ।
• दुःख का निरोध होता है शरीर की अचंचलता से ।
O
दुःख का निरोध होता है श्वास की अचंचलता से ।
• दुःख का निरोध होता है कर्म - परमाणुओं की या पूर्वकृत संस्कारों की
अचंचलता से ।
यही संयम है ।
-
(सूत्रकृतांग सूत्र के आधार पर दूसरा प्रवचन - लाडनूं ४-१-७९ )
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org