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________________ आचार-शास्त्र के आधारभूत तत्त्व (२) ५५ वाक्गुप्ति सधती है और कार्यगुप्ति सधती है तब श्वास-संयम की बात प्राप्त होती है। श्वास के परमाणुओं को भी न लिया जाए। इन सबका एक निश्चित क्रम है। सबसे पहले कायगुप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि भाषा के लिए, चिन्तन के लिए और श्वास के लिए परमाणुओं को ग्रहण करने वाला है-शरीर। यह स्थूल शरीर ही सारे परमाणुओं को आकर्षित करने वाला है। हमारे विकास का एक क्रम है। सबसे पहले शरीर का विकास होता है। इसके बाद भाषा का विकास होता है। एकेन्द्रिय वर्ग से जीव द्वीन्द्रिय आदि वर्गों में पादन्यास करता है। एकेन्द्रिय वर्ग के जीवों में भाषा का विकास नहीं है । भाषा का विकास द्वीन्द्रिय आदि प्राणियों में होता है । भाषा के विकास के पश्चात् मन के विकास का क्रम प्राप्त होता है। इसी क्रम से चलें। पहले मन का निरोध, फिर भाषा का निरोध और फिर शरीर का निरोध । शरीर का ही एक सूक्ष्म भाग हैश्वास । फिर उसका निरोध । आगम कहते हैं—मणजोगं निरंभई, वईजोगं निरंभई, कायजोगं निरंभई। अयोगावस्था में केवली पहले मनोयोग का निरोध करता है, मानसिक चंचलता का निरोध करता है। फिर वह वचन योग का निरोध करता है, वचन की चंचलता का निरोध करता है और फिर काययोग का निरोध करता है, शरीर की चंचलता का निरोध करता है। सबके अन्त में वह 'आणापाणं निरंभई'-श्वास-प्रवास का निरोध करता है, श्वास की चंचलता का निरोध करता है। जब इन सबका निरोध होता है तब कर्म-परमाणुओं का भी निरोध होने पर दुःख का निरोध हो जाता है। सुन्दर क्रम है। वह इस प्रकार है • मन के परमाणुओं का निरोध । ० वचन के परमाणुओं का निरोध । ० शरीर के परमाणुओं का निरोध । ० श्वास-प्रश्वास के परमाणुओं का निरोध । ० कर्म के परमाणुओं का निरोध । ० दुःख का निरोध। इसी का नाम ह–संयम। भगवान् महावीर ने जिस आचार का प्रतिपादन किया उसके तेरह मूलभूत अंग है-पांच महाव्रत, पांच समितियां और तीन गुप्तियां । ये सारे अंग संयम के आधार पर विकसित हुए हैं। असंयम से दुःख होता है। इसको हम इन शब्दों में भी कह सकते हैं० मन की चंचलता से दुःख होता है। ० वाणी की चंचलता से दुःख होता है। ० शरीर की चंचलता से दुःख होता है। • श्वास की चंचलता से दुःख होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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