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________________ ५० मनन और मूल्यांकन से निकलना या न निकलना संकल्प के वशीभूत नहीं है । नियति के कारण वह वहां से निकलता है और विकास करने लग जाता है। यदि कोई कहे कि यह तो मान्यता मात्र है। क्या इसका कोई तार्किक समाधान भी है ? उत्तर निषेधात्मक ही होगा। कोई तार्किक समाधान नहीं दिया जा सकता, क्योंकि जहां नियति का स्वीकार है वहां तर्क नहीं होता। यह प्रकृतिवाद है, शाश्वतवाद है। नियतिवाद को यदि हम वर्तमान चिंतन के संदर्भ में प्रस्तुत करें तो उसे हम सार्वभौम नियम कह सकते हैं। विश्व के कुछेक सार्वभौम नियम (यूनिवर्सल लाज) होते हैं, जिनसे विश्व की सारी व्यवस्था संचालित होती है। ये नियम शाश्वत हैं। इनमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। अब हम इन सार्वभौम नियमों को ईश्वरीय सत्ता माने, काल का विपाक कहें, कोई अन्तर नहीं आता। भिन्न-भिन्न शब्दों का अभ्युपगम हो सकता है। किन्तु ये सब नियम नियत हैं, जागतिक हैं, यूनिवर्सल हैं । ये सब अपरिवर्तनीय हैं। जैसे पुद्गल के लिए नियम हैं, वैसे ही चेतन के लिए नियम हैं । परमाणुओं का एक नियम है कि अमुक काल के बाद वर्ण का, गंध का, रस का और स्पर्श का परिवर्तन अवश्य ही होगा। यह निश्चित नियम है। इसे टाला नहीं जा सकता। इसी प्रकार चेतन के लिए यह निश्चित नियम है कि अमुक काल के पश्चात् जीव अव्यवहारराशि से निकलकर व्यवहार-राशि में आएगा। अविकास की शृंखला से छूटकर विकास की शृंखला में जुड़ जाएगा। यह नियति है। हम इसे सर्वथा अस्वीकार नहीं कर सकते । यदि हम नियतिवाद को स्वीकार नहीं करते तो व्यवस्था में बहुत गड़बड़ियां हो जाती हैं। जागतिक नियम बहुत स्पष्ट हैं, उन्हें अमान्य नहीं किया जा सकता। किन्तु हम नियति को ही सब कुछ मानकर चलें तब हमारा सारा संकल्प यंत्रवत् हो जाएगा। हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। जो होना है, होगा। ___एक मकान है। वह जड़ है। उसकी कुछेक बातें नियत हैं। वह सर्दी में भी छांह देगा और गर्मी में भी छांह देगा। वह छांह के स्थान पर आतप और आतप के स्थान पर छांह नहीं ला सकता। मनुष्य चेतन है। उसमें स्वतंत्रता है। यदि सर्दी है तो वह धूप में जाकर बैठ सकता है और यदि धूप है तो वह छांह में आकर बैठ सकता है। वह स्वतंत्र है, करने या न करने में। एक रेलगाड़ी पटरी पर चलती है। उसमें यह स्वतंत्रता नहीं है कि इच्छा हो तो पटरी पर चले और इच्छा न हो तो नीचे चलने लग जाए। किन्तु चींटी में वह स्वतंत्रता है। वह चाहे तो पटरी पर भी चल सकती है और चाहे तो नीचे उतर सकती है, नीचे भी चल सकती है। चींटी में (सभी प्राणियों में) इच्छा-शक्ति का विशिष्ट गुण होता है और जब जीव अव्यवहार-राशि से व्यवहार-राशि में आता है तब इच्छा-शक्ति का प्रयोग प्रारंभ कर देता है । उस इच्छा-शक्ति या संकल्प-शक्ति के आधार पर एकेन्द्रिय से द्वीन्द्रिय बनता है, दो इन्द्रिय वाला बनता है। फिर जैसे-जैसे उसके संकल्प का विकास होता है वह तीन इन्द्रिय वाला, चार इन्द्रिय वाला और पांच इन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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