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________________ आचार-शास्त्र के आधारभूत तत्त्व (१) ४३ श्वास लेते हैं, चिन्तन के परमाणुओं को ग्रहण करते हैं, संस्कारों को ग्रहण करते हैं—यह सब परिग्रह है, बंधन है। एक बच्चा मां से जो कुछ ग्रहण करता है वह सब परिग्रह है। माता-पिता के गुण-धर्म और संस्कार लेना, आहार लेना, शरीर धारण करना, शरीर का पोषण करना—यह सारा परिग्रह है। इसकी सीमा बहुत व्यापक है। परिग्रह तीन भागों में विभक्त है--कर्म, शरीर और धन-धान्य आदि । महावीर ने कहा-"परिग्रह बंधन है।" यदि यहां कर्मशास्त्रीय विवेचन होता तो कहा जाता कि राग-द्वेष बंधन हैं, आठ कर्मों का बंध होना बंधन है । पर यदि हम सोचें तो यह कर्मशास्त्रीय विवेचन नहीं है, यह तो आचारशास्त्रीय विवेचन है। इसमें कर्म-बंधन विवक्षित नहीं है, परिग्रह-बंधन विवक्षित है। आदमी सबसे पहले परिग्रह से बंधता है और अन्त तक उसी से बंधा रहता है। उसकी जीवन की सारी यात्रा परिग्रह से होती है। दूसरा प्रश्न है—बंधन-मुक्ति का उपाय क्या है ? इसका उत्तर है-परिवार, धन आदि के प्रति भेदानुभूति का होना ही बंधन-मुक्ति का उपाय है। प्रश्न आता है कि यहां परिग्रह की बात कही गई है, हिंसा की बात क्यों नहीं कही गई ? प्रश्न उचित है। हमें समझना है कि आदमी हिंसा के लिए हिंसा नहीं करता। वह सारी प्रवृत्ति, सारी हिंसा परिग्रह के लिए करता है। परिग्रह है-- प्रयोजन, हिंसा है--समाधान । चार पुरुषार्थों में भी दो प्रयोजन हैं और दो साधन हैं । मोक्ष प्रयोजन है, धर्म साधन है। काम प्रयोजन है, अर्थ साधन है। महावीर का दृष्टिकोण है कि मनुष्य की मूलवृत्ति है-संग्रह करना। यही परिग्रह है। व्यक्ति परिग्रह के लिए ही हिंसा करता है । जीवन की समूची यात्रा संग्रह के लिए चलती है। कपड़ा, धन, धान्य बाहर से लेना-यह सब संग्रह है, परिग्रह है। ____ बंधन का प्रेरक तत्त्व क्या है ? वह है ममत्व । आदमी ममत्व के कारण ही संग्रह करता है। उसका शरीर के प्रति ममत्व है, परिवार और समाज के प्रति ममत्व है, राष्ट्र के प्रति ममत्व है। इस ममत्व के कारण ही वह बंधा हुआ है। उसी की प्रेरकता से वह परिग्रह करता है और परिग्रह के लिए हिंसा करता है। जैसे बंधन का प्रेरक तत्त्व है-ममत्व, वैसे ही बंधन-मुक्ति का प्रेरक तत्त्व है-अत्राण की अनुभूति । मनुष्य को यह अनुभव होना चाहिए कि परिवार और धन में बाणशक्ति नहीं है । बे वाण नहीं दे सकते। वे अक्षम हैं । बंधन-मुक्ति का यह पहला प्रेरक तत्त्व है। ___ बंधन-मुक्ति का दूसरा प्रेरक तत्व है-सुख-दुःख की क्षणिकता या नश्वरता का अनुभव। ___ बंधनमुक्ति के ये दो प्रेरक तत्त्व हैं। राग-चेतना से सुख होता है। आगमकार कहते हैं-खणमेत्तसोक्खा-सुख क्षणिक होता है। यह अध्यात्म का उपदेश है। व्यवहार में हम देखते हैं कि भूखे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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