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आचार का पहला सूत्र २३
जीवों के आभामण्डल होता है, किन्तु इसे जानना तर्क का विषय नहीं है । यह अतीन्द्रिय ज्ञान या सूक्ष्म यन्त्रों के द्वारा ही जाना जा सकता है। यह बुद्धि के स्तर पर नहीं जाना जा सकता। जो जीव जितने सूक्ष्म होते हैं, उनका आभा-मण्डल भी उतना ही सूक्ष्म होता है । उसे जानने के दो ही साधन हैं
१. अतीन्द्रिय ज्ञान (साधना द्वारा उपलब्ध ज्ञान) ।
२. यन्त्रों के द्वारा किया जाने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान ।
जानने का माध्यम अतीन्द्रित ज्ञान ही होगा। यह ज्ञान इन्द्रिय और मन की परिधि में नहीं आता, अतः तर्क का विषय नहीं बनता । तर्क वहीं होता है जहां हम कोई व्याप्ति बनाते हैं और वह व्याप्ति इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष हो । प्राचीनकाल
साधना द्वारा लब्धज्ञान से इन सूक्ष्म जीवों के आभामण्डल का साक्षात् किया जाता था और आज सूक्ष्म यन्त्रों के द्वारा उसका साक्षात् किया जाता है ।
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