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________________ ३. पाचार का पहला सत्र आचार के पांच प्रकार हैं-ज्ञान आचार, दर्शन आचार, चारित्र आचार, तपः आचार और वीर्य आचार। - आचारांग सूत्र में सबसे पहले चारित्र आचार का वर्णन हुआ है। चारित्र आचार का पहला सूत्र है-अहिंसा । इसका अर्थ है-प्राणातिपात से विरति, जीव हिंसा का त्याग । अहिंसा के प्रसंग में सबसे पहले पृथ्वीकाय की हिंसा की विरति का उपदेश दिया गया। इसका एक कारण यह प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में यह मान्यता थी कि सृष्टि की रचना भूतों से हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि भूतों से चेतना निर्मित होती है। इस विषय में भगवान् महावीर का दृष्टिकोण इस अहिंसा के प्रसंग में ही प्रतिपादित होता है। उन्होंने कहा, "पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु-ये स्वयं जीव हैं। इनमें जीव उत्पन्न नहीं होते, ये स्वयं जीव हैं । यह दृश्य जगत् जीवों से बना हुआ है। परमाणु सूक्ष्म होते हैं, वे जीव के शरीर रूप में परिणत होकर स्थूल बनते हैं।" इसका अर्थ यह हुआ कि यह स्थूल या दृश्य जगत् या तो जीवच्छरीर है या जीवमुक्त शरीर है। स्थूलता और दृश्यता जीवों के कारण उत्पन्न होती है। जो पुद्गल जीव के शरीर के रूप में परिणत हो गए-जीबों ने जिन पुद्गलों को अपने शरीर के रूप में परिणत कर लिया, वे पुद्गल स्थूल बन जाते हैं। वे दो ही प्रकार के हैं--जीवच्छरीर या जीवमुक्त शरीर । आगमों में दो शब्द प्रचलित हैं-बद्धलगा, मुक्केलगा-बद्ध और मुक्त । पुद्गल दो प्रकार के होते हैं-बद्ध पुद्गल और मुक्त पुद्गल । जीव से बद्ध पुद्गल और जीव से मुक्त पुद्गल । जीव जितनी वर्गणाओं का उपयोग करता है, वे सारी वर्गणाएं बद्ध होती हैं । जीवमुक्त वर्गणाएं भी हैं। - प्राचीनकाल में दोनों विचारधाराएं थीं-भूतों से सृष्टि और चेतना उत्पन्न हुई है या चेतन से सृष्टि उत्पन्न हुई है । स्थूल सृष्टि जीव से हुई है, यह भी अपेक्षादृष्टि से कहा जा सकता है। क्योंकि यह स्थूल या दृश्य जगत् जीव के द्वारा कृत है। इस दृष्टि से सर्वप्रथम जीव के रूप में पृथ्वी का निरूपण हुआ। पृथ्वी जो भूत माना जाता है, वह भूत ही नहीं, स्वयं जीव है। वह जीव का उत्पादक नहीं, स्वयं जीव है। उसके प्रति भी आत्मवत् व्यवहार होना चाहिए । पृथ्वी के अनन्तर दूसरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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