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________________ १४ मनन और मूल्यांकन करता, बह अन्य जीवों की भी हिंसा करता है । पुनः एक प्रश्न होता है कि क्या पृथ्वीकाय में चेतना है ? प्रतीत नहीं होता कि उसमें चेतना है, क्योंकि ऐसा कोई लक्षण नहीं दीखता, जिससे जाना जा सके कि चेतना है, फिर यह हिंसा की बात क्यों आरोपित की जाए ? इस प्रश्न को विस्तार से समझाया गया कि पृथ्वीकाय में चेतना है -- यह निश्चित स्थापना है । जीव और अजीव का भेद इस आधार पर स्थापित करते हैं कि जीव में कुछ ऐसे लक्षण हैं जो अजीव में नहीं होते । प्राणों का 'स्पन्दन, हलन चलन, श्वास, आहार, पुद्गलों का सात्मीकरण - ये कुछ बातें जिनमें होती हैं, उसे हम जीव कहते हैं। ये बातें जिनमें नहीं होतीं उसे हम अजीव कहते हैं । जिसमें अपने सुखदुःख को प्रकट करने की क्षमता होती है वह जीव होता है और जिसमें यह क्षमता नहीं होती, वह अजीव कहलाता है । क्या पृथ्वीकाय में ये क्षमताएं हैं, जिनके आधार पर यह मान सकें कि पृथ्वीकाय जीव है ? इस प्रश्न के उत्तर में यह बताया गया कि एक आदमी जो जन्म से अंधा है, बहरा है और मूक है, उसका कोई छेदन"भेदन करता है --- टखने का, घुटने का, पिंडली का, जंघा का या एक-एक अवयव का छेदन-भेदन करता है, क्या उस व्यक्ति को कोई पीड़ा की अनुभूति नहीं होती ? अवश्य होती है, क्योंकि उसमें चेतना है । वह पीड़ा का अनुभव करता है । वह बोलकर अपनी - पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकता, क्योंकि उसे वाणी प्राप्त नहीं है । वह सुनकर भी नहीं जान सकता कि उसे पीड़ा हो रही है, क्योंकि वह सुन भी नहीं सकता । अंधा होने के कारण मारने वाले को भी नहीं देख सकता । उसके सारे अवयव इस प्रकार • खण्डित कर दिये गए हैं कि उसमें किसी प्रकार के संचालन की क्षमता भी नहीं रहती । उसे इतना व्यथित और बेभान कर दिया गया है कि मूर्च्छा जैसी स्थिति प्राप्त करा दी गई है । वह पीड़ा का अनुभव करते हुए भी अपनी स्थिति को - अभिव्यक्त नहीं कर सकता। जब एक मानव जिसके पास पांच इन्द्रियां हैं, हलन'चलन है, दूसरे जीवों की अपेक्षा से विकसित चेतना प्राप्त है, वह भी इस स्थिति में अपनी वेदना को प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं होता तो एक स्थावर जीव जो -संज्ञाओं से शून्य है, जिसकी चेतना अल्पविकसित हैं, बोलने की क्षमता नहीं है, हलनचलन की क्षमता नहीं है, जिसके हाथ-पैर आदि अवयव नहीं हैं, वह प्राणी यदि अपनी वेदना को अभिव्यक्त नहीं कर सकता तो उसके आधार पर यह नहीं माना जा • सकता कि उसमें वेदना नहीं है । यह मानना ही अधिक संगत होगा कि उसमें वेदना है पर उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता, क्योंकि अभिव्यक्ति का उसके पास कोई साधन नहीं है । इसका निष्कर्ष यह निकला कि तथाकथित बधिर, मूक, अंध और पीड़ा से मूच्छित मानव को मारने पर वेदना होती है । पर वह वेदना को प्रकट नहीं कर सकता। इसी प्रकार पृथ्वीकाय के जीव को भी वेदना होती है, किन्तु वह 'स्त्यानद्धि' मूर्च्छा के कारण उसे व्यक्त नहीं कर पाता । 'स्त्यानद्ध' मूर्च्छा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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