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१२ मनन और मूल्यांकन
अतिशयज्ञानी व्यक्ति का सहवास मिल जाता है तो उसे एक बल और प्राप्त हो जाता है। वह उस ज्ञानी व्यक्ति से सुन लेता है--प्राणी का वध करना हिंसा है
और हिंसा एक ग्रन्थि है। उसमें ऐसा संस्कार निर्मित हो जाता है, जिससे मुक्त होना सरल नहीं होता। वह ग्रन्थि कठिनाई से खुलती हैं। वह सदा सताती रहती है । एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए (१-२५)हिंसा एक ग्रन्थि है। वह मोह पैदा करती है। वह ऐसी मूढ़ता पैदा करती है, जिससे छुटकारा पाना मुश्किल होता है। वह सदा पीछा करती रहती है। हिंसा मार-मृत्यु है। व्यक्ति दूसरे को नहीं मारता, वह स्वयं को ही मारता है। जो व्यक्ति दूसरे प्राणी का वध करता है, वह अपना स्वयं का वध करता है। दूसरे प्राणी की मृत्यु नहीं होती, स्वयं की मृत्यु होती है । वह व्यक्ति स्वयं की प्राण-शक्ति से, स्वयं की चैतन्य-शक्ति से और स्वयं के आचार से स्खलित हो जाता है। वह स्वयं पहले मरता है। दूसरों को मारने से पहले वह स्वयं को पहले मारता है।
हिंसा नरक है। 'हिंसा करने वाला नरक में जाता है'-यह भविष्य की बात हो सकती है, किन्तु हिंसा स्वयं नरक है। हिंसा का क्षण नरक का क्षण है। हिंसा करने वाला कब मरेगा और कब उसे नरक प्राप्त होगा, यह आगे की बात है। किन्तु हिंसा का क्षण मृत्यु का क्षण है । हिंसा का क्षण नरक का क्षण है । उस स्थिति का सही चित्रण करने के लिए वर्तमान में भविष्य का उपचार-आरोपण किया गया. है। इस आरोपण के कारण हिंसा का स्वरूप बहुत स्पष्ट हो जाता है कि हिंसा करने वाले व्यक्ति की जो चेतना निर्मित होती है वह नारकीय चेतना होती है । इस प्रकार वह व्यक्ति अपने अन्तःकरण में इस प्रकार दुःख अजित कर लेता है कि बिना नरक में गए भी वह नारकीय यातना को इसी जन्म में भुगत लेता है। जब व्यक्ति को सम्बोधि प्राप्त हो जाती है और उस सम्बोधि का समर्थन जब उसे किसी अतीन्द्रिय ज्ञानी द्वारा मिल जाता है तब उसकी श्रद्धा पुष्ट हो जाती है। वह यह मानने लग जाता है कि हिंसा वही करता है जो आसक्त होता है, जो पागल होता है। जिसमें आसक्ति नहीं होती, वह हिंसा नहीं करता। जिसमें उन्माद या पागलपन नहीं होता, वह हिंसा नहीं करता।। ____ आसक्ति स्वयं एक नशा है, उन्माद है, पागलपन है। आसक्ति का चरम-बिन्दु ही पागलपन है। आसक्ति जब तीव्र होती है तब वह एक ही दिशा में प्रवाहित होने लग जाती है। पागल भी वही होता है जो जिस बात को पकड़ लेता है, उसे छोड़ता नहीं, छोड़ नहीं पाता। जिसमें छोड़ने की क्षमता नहीं होती, वह पागल होता है। पागल और समझदार व्यक्ति के व्यवहार में कोई विशेष अन्तर नहीं होता। समझदार आदमी में भी बात की पकड़ होती है, किन्तु उसमें यह भी क्षमता होती है कि वह जब चाहे तब उस बात को छोड़ सकता है। पागल आदमी में नियन्त्रण की क्षमता नहीं होती। जो बात पकड़ ली, वह पकड़ ही ली। उसे छोड़ने का प्रश्न
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