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१० मनन और मूल्यांकन दूसरों को दुःख देता है, दूसरों का वध करता है, परिताप देता है, सताता है, दूसरों की उपेक्षा करता है। इन सब प्रवृत्तियों का मूल कारण है-उसकी आतुरता। आतुर व्यक्ति दूसरों को परिताप देते हैं-आतुरा परितार्वति (१-१४)।
आतुर व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं-कामातुर, भयातुर और क्षुधातुर।
काम से आतुर व्यक्ति वह होता है जिसके केवल मन और इन्द्रियां विकसित होती हैं, संबोधि और प्रज्ञा विकसित नहीं होती।
भय से आतुर व्यक्ति वह होता है जिसकी बुद्धि केवल विषयों तक ही जाती है। केवल विषयों की परिक्रमा करने वाला सदा भयातुर होता है। उसमें यह आशंका बनी रहती है कि प्राप्त विषय कोई छीन न ले। यह भय उसे निरन्तर सताता रहता है। उसका सारा मानस भयाक्रान्त हो जाता है। भय से आतुर व्यक्ति दूसरों को परिताप देता है। . क्षुधा से आतुर व्यक्ति वह होता है जिसका मन सदा भूख की पूर्ति में ही लगा रहता है । वह दूसरों को परिताप देता है।
तीनों वृत्तियां आतुरता पैदा करती हैं। वह आतुरता व्यक्ति को हिंसा के लिए प्रेरित करती है । आतुर हिंसा की बहुत बड़ी प्रेरणा है। यह आतुरता आदमी की अज्ञानपूर्ण मनःस्थिति और असंबोधि की मनःस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। आर्त से असंबोधि को बल मिलता है। असंबोधि से अज्ञान को बल मिलत है । अज्ञान से व्यथा और आतुरता को बल मिलता है और वह व्यक्ति प्राणों का अतिपात-हिंसा करता है।
यद्यपि इस संसार में सभी प्राणी वैसे ही हैं जैसी अपनी आत्मा है। लेकिन व्यक्ति अज्ञान और विषयासक्ति के कारण उन जीवों को नहीं जानता और जान लेने पर भी उन जीवों के प्रति वैसा व्यवहार नहीं करता। ____ लज्जमाणा पुढो पास (१-१५)-कुछ लोग ऐसे हैं जो संयम का व्यवहार नहीं करते । लज्जा का अर्थ है-संयम । सामान्य व्यक्तियों की बात हम छोड़ दें किन्तु कुछ ऐसे मनुष्य भी हैं जो अपने आपको अनगार कहते हैं, गृहत्यागी संन्यासी कहते हैं, वे लोग भी अहिंसा का पालन नहीं करते, संयम का पालन नहीं करते, क्योंकि उन्हें अभी संबोधि प्राप्त नहीं है । वे घर को छोड़कर कुछेक कारणों से संन्यासी बन गए किन्तु वे संबोधि की चेतना को विकसित नहीं कर पाए, अतः वे गृहत्यागी होते हुए भी हिंसा में प्रवृत्त हैं। वे जीवों की हिंसा करते हैं। __ हिंसा करने के भी कुछेक कारण हैं । जब परमार्थ की चेतना जागृत नहीं होती, केवल इन्द्रिय और मन की परिधि में ही चेतना का विकास होता है तब मन में प्रशंसा, बड़प्पन, पजा, प्रतिष्ठा की भावना पनपती है। यह लोकषणा सदा बनी रहती है।
इस लोकषणा के कारण वे लोग हिंसा करते हैं । लोकषणा हिंसा का एक-मुख्य
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