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१२४ मनन और मूल्यांकन
संकल्प और काम
काम संकल्प से उत्पन्न होता है - यह एक सिद्धांत है । यह सिद्धान्त काव्य की भाषा में इस प्रकार उपलब्ध होता है— काम ! मैं तेरे रूप को जानता हूं । तू संकल्प से उत्पन्न होता है। मैं तेरा संकल्प नहीं करूंगा, इसलिए तू मेरे मन में उत्पन्न नहीं होगा ।
तुलना के बिन्दु एक बड़ी रेखा का निर्माण कर सकते हैं । अभी केवल बिन्दु प्रस्तुत किये गए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि अद्वैत और द्वैत की धाराओं में प्रवाहित गीता का रहस्य अनेकान्त का रहस्य भी बन सकता है ।
१. गीता, ६।२४ :
संकल्प प्रभवान् कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः । मनः सर्वेन्द्रियग्रामं, विनियम्य समन्ततः । २. अगस्त्यचूर्णि में उद्धत श्लोक
'काम ! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे । नाहं संकल्पयिष्यामि ततो मे न भविष्यसि ॥
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