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संक्षेप में तीन हेतु ये हैं१. स्वयं का ज्ञान ।
२. दूसरे का ज्ञान ।
३. दूसरे के द्वारा निरूपित किसी व्यक्ति से सुना हुआ ज्ञान ।
इन तीनों माध्यमों से अपने अस्तित्व के बारे में जानने का प्रयत्न करना चाहिए । जब यह ज्ञात हो जाता है कि मैं कौन हूं ? मैं कहां से आया हूं ? मैं कहां जाऊंगा ? तब आगे की रेखाएं स्पष्ट हो जाती हैं । महावीर ने इस भूमिका में उस सिद्धान्तको आधार बनाया -- केवल अग्र का ही नहीं, मूल का भी स्पर्श करना चाहिए। उस समय दो तरह की विचारधाराएं चल रही थीं । एक थी अग्रवादी धारा और दूसरी थी मूलवादी धारा । अग्रवादी विचारधारा केवल वर्तमान की विचारधारा है। उसके अनुसार वर्तमान में जो है, उसे देखो । दुःख है तो दुःख को देखो, जानो और काटो । इस बात पर चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है कि दुःख कहां से आया ? बाण लगा है तो उसका उपचार करो। किन्तु बाण किसने फेंका ?इस बात पर जाओगे तो उसका उपचार नहीं हो सकेगा । लेकिन महावीर इस बात से सहमत नहीं थे । उन्होंने कहा- -जब तक यह विचार नहीं करोगे कि बाण किसने फेंका, कहां से आया, तब तक केवल वर्तमान का उपचार करने पर समस्या सुलझेगी नहीं । बाण आते ही रहेंगे । एक आया, दूसरा और तीसरा आया तो चौथा भी आ सकता है । उन्होंने दो उदाहरणों द्वारा इस तथ्य को समझाया। उन्होंने कहा- - दो प्रकार की वृत्ति होती है। एक है श्वावृत्ति और दूसरी है सिंहवृत्ति । कुत्ते के सामने ढेला फेंकने पर वह ढेले को चाटने लग जाता है। वह उसकी चिन्ता नहीं करता कि ढेला किसने फेंका ? क्यों फेंका ? वह केवल वर्तमान की घटना को देखता है। सिंह की ओर गोली दागो । वह गोली पर ध्यान देने की अपेक्षा उस ओर ध्यान अधिक देगा कि गोली किसने दागी ? वह उसी ओर आक्रमण करेगा । वह जानता है, एक गोली आई है तो दूसरी, तीसरी भी आ सकती है । वह मूल को खोजता है । यह है— सिंहवृत्ति ।
आचार संहिता की पृष्ठभूमि ३
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भगवान् महावीर ने कहा, "अग्र को भी देखो और मूल को भी देखो ।” उन्होंने दोनों का समन्वय किया । उन्होंने सुझाया, “वर्तमान को देखना ही पर्याप्त नहीं है। घटना के मूल स्रोत को जानना भी आवश्यक है, इस पर भी ध्यान देना है, और दुःख के हेतु क्या हैं— इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है ।" अग्र और मूल- -दोनों पर विचार करना चाहिए। अग्र है वर्तमान और मूल है उसका हेतु । दोनों पर विचार करना है तो इस प्रश्न का समाधान पाना आवश्यक है कि आत्मा क्या है ? वह कहां से आता है ? मैं कौन हूं ? मैं कहां से आया हूं ? मुझे कहां जाना है ? जब ये जान लिये जाते हैं, उन उपायों के द्वारा जो पूर्व निर्दिष्ट हैं, तब मूलभूत प्रश्न समाहित हो जाता है और उसके साथ-साथ दूसरे अनेक प्रश्न भी उत्तरित हो जाते
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