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________________ ११८ मनन और मूल्यांकन चेतना के स्तर हमारी चेतना अनेक स्तरों में विभक्त है। सभी दर्शनों ने अपनी-अपनी अवधारणा के साथ चेतना-स्तरों को व्याख्यायित किया है। गीता में चेतना के अनेक स्तर उपलब्ध होते हैं१. इन्द्रिय-चेतना, ४. चित्त-चेतना, २. मनस्चेतना, ५. बुद्धि-चेतना, ३. प्रज्ञा-चेतना, ६. द्रष्टा-चेतना। गीता (३।४२) में इन्द्रिय, मन, बुद्धि और द्रष्टा-चेतना का उल्लेख मिलता है। इन्द्रियां प्रकृष्ट हैं। उनसे आगे मन, उससे आगे बुद्धि और बुद्धि से परे है आत्मा। मन संकल्प-विकल्पात्मक चेतना है और आत्मा द्रष्टा है। मानसिक चेतना इन्द्रिय-सापेक्ष चेतना है। इन्द्रिय द्वारा उपलब्ध विषयों के आधार पर संकल्पविकल्प उत्पन्न होते हैं। बुद्धि-चेतना इन्द्रिय-निरपेक्ष होती है। आत्यन्तिक सुख को गीता में अतीन्द्रिय और बुद्धिग्राह्य बतलाया गया है। ___ सांख्य-दर्शन में चित्त की संकल्पना नहीं है। पतंजलि के योगदर्शन में मन की संकल्पना नहीं है। गीता में मन और चित्त-दोनों उपलब्ध हैं । जैन दर्शन में भी मन और चित्त-दोनों उपलब्ध होते हैं, किन्तु मन पौद्गलिक है। वह पौद्गलिक है इसलिए अचेतन है। चित्त स्थलशरीर में अभिव्यक्त होने वाली चेतना है, इसलिए वह (चित्त) चेतन है। . मन और चित्त का स्वरूप एक नहीं है। चित्त स्थाई तत्त्व है। मन उत्पन्न होता है और विलीन होता है । उसका उत्पन्न होना और विलीन होना ही चंचलता है। इस चंचलता को ध्यान में रखकर ही अर्जुन ने कहा-'मन चंचल है। उसका निग्रह वायु की तरह सुदुष्कर है। इसके उत्तर में योगिराज कृष्ण ने कहा'अभ्यास और वैराग्य के द्वारा उसका निग्रह किया जा सकता है'।' मन का निग्रह करना होता है। मन स्वयं अपना निग्रह नहीं कर सकता। नट कितना ही सुशिक्षित हो, वह अपने कंधे पर नहीं चढ़ सकता। तलवार की धार कितनी ही तेज हो, वह स्वयं को नहीं काट सकती। मन का निग्रह करने वाला कोई दूसरा तत्त्व है । वह चित्त या बुद्धि है। १. गीता, ६।२१: २. वही, ६।३४ : सुखमात्यन्तिकं यद् तद् बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् । चंचलं हि मनः कृष्ण !, प्रमाथि बलवद् दृढम् । तस्याहं निग्रहं मन्ये, वायोरिव सुदुष्करम् ॥ अभ्यासेन तु कौन्तेय! वैराग्येण च गृह्यते। ३. वही, ६।३५: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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