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________________ १०४ मनन और मूल्यांकन सूचना मिलती है। नियुक्तिकार ने लिखा है- 'पंच परमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करना चाहिए। यह पंच नमस्कार सामायिक का ही एक अंग है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नमस्कार महामंत्र उतना ही पुराना है जितना सामायिक सूत्र । सामायिक आवश्यक का प्रथम अध्ययन है। नंदी में आयी हुई आगम की सूची में उसका उल्लेख है। नमस्कार महामंत्र का वहां एक श्रुतस्कन्ध या महाश्रुतस्कन्ध के रूप में कोई उल्लेख नहीं है। इससे भी अनुमान किया जा सकता है कि यह सामायिक अध्ययन का एक अंगभूत रहा है। सामायिक के प्रारम्भ में और उसके अन्त में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया जाता था। कायोत्सर्ग के प्रारम्भ और अन्त में भी पंचनमस्कार की पद्धति प्रचलित थी। आचार्य भद्रबाहु के अनुसार नंदी और अनुयोगद्वार को जानकर तथा पंचमंगल को नमस्कार कर सूत्र को प्रारम्भ किया जाता है। संभव है इसीलिए अनेक आगमसूत्रों के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र लिखने की पद्धति प्रचलित हुई। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने उसी आधार पर नमस्कार महामंत्र को सर्वश्रुतान्तर्गत बतलाया। उनके अनुसार पंच नमस्कार करने पर ही आचार्य सामायिक आदि आवश्यक और क्रमशः शेष श्रुत शिष्यों को पढ़ाते थे। प्रारम्भ में नमस्कार मंत्र का पाठ देने और उसके बाद आवश्यक का पाठ देने की पद्धति थी। इस प्रकार अन्य सूत्रों के प्रारम्भ में भी नमस्कार मंत्र का पाठ किया जाता था। इस दृष्टि से उसे सर्व-श्रुताभ्यन्तरवर्ती कहा गया। फिर भी नमस्कार मंत्र को जैसे सामायिक का अंग बतलाया है वैसे किसी अन्य आगम का अंग नहीं बताया गया है। इस दृष्टि से नमस्कार महामंत्र का मूलस्रोत सामायिक अध्ययन ही सिद्ध होता है । आवश्यक या सामायिक अध्ययन के कर्ता यदि गौतम गणधर को माना जाए तो पंचमंगल रूप नमस्कार महामंत्र के कर्ता भी गौतम गणधर ही ठहरते हैं। १. आवश्यक नियुक्ति, गाथा १०२७ : कयपंचनमोक्कारो करेइ सामाइयंति सोऽभिहितो। सामाइयंगमेव य ज सो सेसं अतो वोच्छं। २. वही, गाथा १०२६ : नंदिमणुओगदारं विहिवदुवग्घाइयं च नाऊणं । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स ।। ३.विशेषावश्यकभाष्य, गाथा : सोसव्वसुतक्खंधब्भन्तरभूतोजओततो तस्स । आवासयाणुयोगादिगहणगहितोऽणुयोगो वि ॥ ४. वही, गाथा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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