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________________ संस्कृत साहित्य : एक विहंगावलोकन ६१ शुरू किए। यह क्रम १९वीं शती तक चला। नरचंद्र सूरी ने वि० सं० १२८० में ज्योतिस्सार (नारचंद्र ज्योतिष्) नामक ग्रंथ की रचना की। उपाध्याय नरचंद्र विक्रम की चौदहवीं शती में बेडाजातक वृत्ति, प्रश्नशतक, प्रश्न चतुर्विंशतिका आदि अनेक ग्रंथ लिखे। डॉ० नेमिचंद्र शास्त्री ने इनके ग्रंथों का मूल्यांकन करते हुए लिखा है-बेडा जातकवृत्ति में लग्न और चंद्रमा से ही समस्त फलों का विचार किया गया है। यह जातक ग्रंथ अत्यन्त उपयोगी है। प्रश्नचतुर्विशतिका के प्रारम्भ में ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण गणित लिखा है। ग्रंथ अत्यन्त गूढ़ और रहस्यपूर्ण है।' - उपाध्याय मेघविजय ने विक्रमी के अठारहवीं शती के पूर्वार्ध में 'वर्षप्रबोध', 'रमलशास्त्र', 'हस्तसंजीवन' आदि अनेक ग्रंथ लिखे। डा० नेमिचंद्र शास्त्री के अनुसार-'इनके फलित ग्रंथों को देखने से संहिता और सामुद्रिक शास्त्र संबंधी प्रकाण्ड विद्वत्ता का पता सहज में लग जाता है। मध्ययुग में जैन उपाश्रय शिक्षा, चिकित्सा और ज्योतिष के केन्द्र बन गए थे। जैसे-जैसे जन सम्पर्क बढ़ा वैसे-वैसे लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियां और तद्विषयक साहित्य की मात्रा बढ़ी। स्तोत्र ___ समूचा उत्तर भारत भक्ति की लहर से आप्लावित हो रहा था। ईश्वर और गुरु की स्तुति ही धर्म की प्रधान अंग बन रही थी। जैन धर्म भी उस धारा से अप्रभावित नहीं था। इन बारह सौ वर्षों में विपुल मात्रा में स्तोत्र के पाठ की वृत्ति भी विकसित की गयी। संस्कृत नहीं जानने वाले भी स्तोत्र का पाठ करते थे । इसके साथ श्रद्धा और विघ्न-विलय की भावना दोनों जुड़ी हुई थीं। स्तोत्रों के साथ मंत्र-ग्रंथों का भी निर्माण हुआ। ऐहिक सिद्धि के लिए मंत्र, यंत्र और तंत्र-तीनों का प्रयोग होता था। फलतः तीनों विषयों पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यात्रा-ग्रंथ जिनप्रभसूरी ने वि० सं० १३८६ (ई० स० १३३२) में 'विविध-तीर्थकल्प' नामक ग्रंथ का निर्माण किया। तीर्थ-यात्रा में जो देखा, उसका सजिव वर्णन हुआ उसमें । उसमें भक्ति, इतिहास और चरित-तीनों एक साथ मिलते हैं। १. भारतीय ज्योतिष, संस्करण छठा, पृ० १०२। २. वही, पृ० १०६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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