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________________ ६० मनन और मूल्यांकन विधा और प्रेरक तत्त्व देश, काल, मान्यताएं, परिस्थितियां, लोक-मानस, लोक-कल्याण, जनप्रतिबोध, शिक्षा और उद्देश्य-ये लेखन के प्रेरक तत्त्व होते हैं । लेखन की विधाएं प्रेरक तत्त्वों के आधार पर बनती हैं। जन लेखकों ने अनेक प्रेरणाओं से सस्कृत साहित्य लिखा और अनेक विधाओं में लिखा। धर्म प्रचार के उद्देश्य से धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ लिखे गए। अपने अभ्युपगम की स्थापना और प्रतिपक्ष-निरसन के लिए तर्कप्रधान न्यायशास्त्रों की रचना हुई। जन-प्रतिबोध और शिक्षा के उद्देश्य से कथा-ग्रंथों का प्रणयन हुआ। लोक-कल्याण की दृष्टि से आयुर्वेद और ज्योतिष् के ग्रंथ निर्मित हुए। देश, काल और लोक-मानस को ध्यान में रखकर जन लेखकों ने प्राकृत के साथ-साथ संस्कृत भाषा को भी महत्त्व दिया। प्राकृत युग (विक्रम की तीसरी शती तक) में जैन लेखकों ने केवल प्राकृत में लिखा । प्राकृत-सस्कृत-मिश्रित युग (विक्रम की चौथी शती से आठवीं शती के पूर्वार्ध तक) में अधिकांश रचनाएं प्राकृत में हुईं और कुछ-कुछ संस्कृत में भी। विक्रम की पांचवीं से सातवीं शती के मध्य लिखित आगम-चूणियों में मिश्रित भाषा का प्रयोग मिलता है-प्राकृत के साथ-साथ संस्कृत के वाक्य भी प्रयुक्त हैं। आठवीं शती के उत्तरार्ध में हरिभद्रसूरी ने प्रथम बार आगम की व्याख्याएं सस्कृत में लिखीं। विक्रम की ग्यारहवीं शती के उत्तरवर्ती संस्कृत प्राकृत मिश्रित युग में आगमों की अधिकांश व्याख्याएं संस्कृत में ही लिखी गयीं। अन्य साहित्य भी अधिक मात्रा में संस्कृत में ही लिखे गए। और अनेक विधाओं में लिखे गए। गुजरात, मालवा (मध्य प्रदेश) और दक्षिण भारत तथा राजस्थान में भी लिखे गए साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। आयुर्वेद ___ आयुर्वेद का सम्बन्ध जीवन से है। जीवन का सम्बन्ध स्वास्थ्य से है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध हित-मित आहार से है। हित-मित आहार करते हुए भी यदि रोग उत्पन्न हो जाए तो चिकित्सा की अपेक्षा होती है । जैन विद्वानों ने इस अपेक्षा की भी यथासम्भव पूर्ति की है। उन्होंने राजस्थानी में आयुर्वेद के विषय में प्रचुर साहित्य लिखा। कुछ ग्रंथ संस्कृत में भी लिखे । हर्षकीति सूरी (विक्रम की १७वीं शती) का 'योगचिंतामणि' और यति हस्तिरुचि (विक्रम की १८वीं शती) का 'वैद्य वल्लभ' दोनों प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। ये चिकित्सा-क्षेत्र में बहुत प्रचलित रहे हैं। इन पर अनेक व्याख्याएं लिखी गयीं। ज्योतिष विक्रम् की आठवीं शती से जैन मुनियों और यतियों ने ज्योतिष के ग्रथ लिखने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003087
Book TitleManan aur Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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