________________
चाहता है सुख, जाता है दुःख की दिशा में
८१
बैठा है, सामने से वह व्यक्ति गुजरा, जिसके साथ मुकदमा चला रहा है। व्यक्ति की शांति गायब हो जाएगी। इसका कारण है-उसमें मैत्री का विकास नहीं है । यदि मैत्री और प्रमोद का भाव प्रबल है तो कोई व्यक्ति उसे दुःखी नहीं बना सकता। व्यक्ति में करुणा है तो वह दुःखी नहीं बनेगा। क्रूरता है तो दुःखी बन जाएगा। चौथा तत्त्व है-उपेक्षा—मध्यस्थता । लड़ाई कहीं चल रही है, व्यक्ति उसमें फंस जाएगा, दुःखी बन जाएगा। इस दुनियां में ऐसे लोग भी हैं, जो मुकदमें खरीदकर लड़ते हैं । व्यक्ति कहता है--तुम पच्चास हजार रुपये दो, मैं तुम्हारा मुकदमा लड़गा। यह भी एक धंधा है, व्यवसाय है। दूसरे की लड़ाई का भार स्वयं पर ले लेते हैं और स्वयं के दुःख से दुःखी बन जाते हैं। जहां मध्यस्थता होती है, वहां ये सब बातें नहीं होती, व्यक्ति सुखी बन जाता हैं। साधना की कसौटी
___ मैत्री, प्रमोद, करुणा और उपेक्षा—ये अध्यात्म साधना की चार निष्पत्तियां हैं। अगर जीवन में मंत्री का विकास नहीं है, प्रमोद और करुणा का विकास नहीं है, तटस्थता का विकास नहीं है तो मानना चाहिए---अध्यात्म को समझा नहीं गया है। ये चार अध्यात्म साधना की कसौटियां हैं और यही है अमूर्छा । अगर आत्म-विश्लेषण के साथ सम्यक् अनुभूति करें, अपने आपको देखें तो अपने भीतर से यह परिभाषा प्रस्फुटित होगी-जहां-जहां मेरी अमूर्छा होती है, वहां-वहां मुझे सुख मिलता है। जहां-जहां मूर्छा-मोह होता है, वहां-वहां मुझे दुःख मिलता है । यह प्रत्येक व्यक्ति का अनुभूत सत्य है। जो सुख की कामना करता है, कामना का बोझ बना लेता है, वही कामना उसके लिए पीड़ा बन जाती है, व्यथा बन जाती है । व्यथा और पीड़ा से मुक्ति के लिए मूर्छा को तोड़ना जरूरी है। जैसे-जैसे मूर्छा कम होगी, दुःख कम होता चला जाएगा, व्यक्ति सहज ही सुख की दिशा को उपलब्ध हो जाएगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org