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अस्तित्व और अहिंसाः
नदियां बह रही हैं। अमेरिका में सेक्स के बारे में बहुत साहित्य प्रकाशित किया गया, काम-सुख के लिए अन्धाधुंध प्रचार किया गया किन्तु उसका परिणाम सुखद नहीं रहा। एक पुस्तक निकली-नया ब्रह्मचर्य । इसने अमेरिका में हलचल मचा दी। उसमें लिखा गया था-ब्रह्मचर्य से प्रसन्नता रहती है, शांति मिलती है। लोग उस पुस्तक को पाने के लिए बेचैन बन गए। उन्होंने केवल इन्द्रिय-संवेदन के आधार पर ही सुख को समझा था । इन्द्रियसंवेदन से परे भी सुख है, यह उनके लिए एक नई बात थी । अमूर्छा के स्तर पर, वीतरागता के स्तर पर, रागातीत चेतना के स्तर पर जो सुख होता है, उसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। ऐसी बात उन्हें सुनने को मिली, ऐसा लगा, आग की ज्वाला पर जल का अभिसिंचन हुआ है। व्यापक परिभाषा
हमारे दार्शनिकों ने सुख की परिभाषा बहुत हल्के स्तर पर कर दी-- अनुकूलवेदनीयं सुखम् । यह भी कोई सुख है क्या ? अनुकूल वेदन के साथसाथ प्रतिकूल वेदन तैयार रहता है । प्रायः देखा गया है-अनुकूलता आती है तो साथ-साथ प्रतिकूलता भी प्रस्तुत रहती है। घर में धन बहुत है, पत्नी अनुकूल है, सब ठीक है किन्तु एक लड़का ऐसा पैदा हो गया, जिससे सब सुखों पर पानी फिर गया । मां-बाप का सुख गायब हो गया, वे चिन्तित बन गए। वे सोचते है-यह पैदा ही नहीं होता तो अच्छा था। जिनके पुत्र नहीं हैं, वे पुत्र के लिए रोते हैं और जिनके पुत्र हैं, वे भी रोते हैं।
सुख-दुःख की व्यापक परिभाषा यही हो सकती है--अमूर्छा सुख है। मूर्छा दुःख है । इन्द्रिय-संवेदन भी तब तक होता है, जब तक मूळ गहरी नहीं होती। जब मूर्छा गहरी होती है, इन्द्रिय-संवेदन भी समाप्त हो जाता है। जो व्यक्ति खाने का ज्यादा लोलुप होता है, उसे खाने का स्वाद कभी नहीं आता। खाने का स्वाद उसी व्यक्ति को आता है, जो तटस्थ रहना जानता है । जागरूकता के बिना इन्द्रिय-संवेदन का सुख भी नहीं होता, मानसिक सुख भी नहीं होता । सुख का सूत्र
सुख का सूत्र है-अपने आप में अदुःखी होना । अगर यह बात समझ में आए तो हम कह सकते है-जो मध्यस्थ है, निर्जरापेक्षी है, वह सुखी है, निर्जरापेक्षी होने का मतलब हैं—निषेधात्मक संस्कारों को मिटाना, विधायक भावों का विकास करना । तटस्थ आदमी जो अनुभूति कर सकता है, वह कीचड़ में लिप्त आदमी कभी नहीं कर सकता । अध्यात्म के ग्रन्थों में सुख के चार सूत्र बतलाए गए—मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ । ये सुख के चार मूलस्रोत हैं। इनमें से चाहे जितना सुख निकाला जा सकता है। एक आदमी शांत
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