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________________ • पंडिए पडिलेहाए । ० जे ममाइयमत जहाति से जहाति ममाइयं । प्रवचन १४ ० माला क्यों कुम्हलाई ? .0 अन्वेषण का निष्कर्ष → स्वयं से पूछें - ० णाति सहते वीरे, वीरे णो सहते रति । जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे ण रज्जति ॥ संकलिका O (आयारो २/१३१) 10 लोक - एक शब्द : अनेक अर्थ • शंकराचार्य और मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ • आलोचना : महत्त्वपूर्ण सूत्र .0 (आयारो १ / १५६ ) Jain Education International (आयारो २ / १६० ) • सफलता का सूत्र : आत्म-निरीक्षण ० रेचन करें, रति का भी, अरति का भी विकास का आधार : आत्म-प्रतिलेखन मुझे सुख क्यों भोगना है ? दुःख क्यों भोगना है ? क्या मैं भोगने के लिए ही जन्मा हूं ? क्या मुझे और कुछ करना है ? ० उत्थान का उपाय .0 दूसरों के बारे में सोचने का परिणाम ० विचय की प्रक्रिया : शरीर प्रेक्षा और कायोत्सर्ग व्यक्तित्व - विश्लेषण की परम्परा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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