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________________ ० जाणित दुक्खं पत्तेयं सायं (आयारो २ / २२ ) जेहि वा सद्धि संवसति ते वा णं एगया जियगा । तं पुव्वि पोसेंति, सो वा ते नियगे पच्छा पोसेज्जा ॥ • नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा ॥ O प्रवचन द तुमपि तेस नालं ताणाए वा सरणाए वा ॥ ( आयारो २ / १६-१७) • जीवन के दो पक्ष ० वैयक्तिक गुण : कर्म शास्त्रीय भाषा • वैयक्तिक हैं -- ज्ञान, इन्द्रिय-संवेदन, सुख-दुःख, आनंद, शक्ति और वेदनीय कर्म संकलिका • समाज और सामाजिकता का मूल्य • समाजवाद का दृष्टिकोण • अध्यात्म का दृष्टिकोण • मूर्च्छा को तोड़ने वाला सूत्र ० निश्चय और व्यवहार का समायोजन • सुख और स्वार्थ • स्वार्थ का उदात्तीकरण o • स्वार्थ स्वार्थ से ऊपर उठने में भी • विकार : एक के साथ प्रेम करना • पवित्र मनोभाव : सबके साथ प्रेम करना आत्मकर्तृत्व का सिद्धांत दुःख-सुख : दुःख-सुख के साधन O Jain Education International • स्वगत है सुख और दुःख विनिमय का प्रश्न नहीं O • साधन हैं सामाजिक : संवेदन हैं वैयक्तिक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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