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________________ निःशस्त्रीकरण दूसरों का अपना विचार बन जाता है । का विचार २० वीं शताब्दी में अपने आप प्रश्न शक्तिशाली बन गया है कि अगर यह रही तो न जाने क्या होगा ? ४७ महावीर का यह निःशस्त्रीकरण बलवान् बन रहा है । आज यह शस्त्रों की होड़ इसी गति से चलती जैन श्रावक की आचार संहिता : निःशस्त्रीकरण भगवान महावीर ने जैन श्रावकों के लिए जो व्रतों की आचार संहिता दी, उसका एक सूत्र है— जैन श्रावक शस्त्रों का निर्माण नहीं करेगा, शस्त्रों के पुर्जों का संयोजन भी नहीं करेगा । अनेक लोग शस्त्रों के निर्माण में लगे हुए हैं । वे पुर्जे मंगाते हैं और शस्त्र तैयार कर लेते हैं । प्रत्येक क्षेत्र में शस्त्रों का अंबार लग रहा है । निःशस्त्रीकरण का स्वर शस्त्रीकरण की परिणति के कारण शक्तिशाली होता जा रहा है । अगर अणुशस्त्रों के भण्डार पर ध्यान नहीं दिया गया तो शायद एक समय ऐसा आएगा, सारी की सारी मानव सभ्यता नष्ट हो जाएगी। संभावना की जा रही है - दुनिया वापस प्रस्तर युग में चली जाए। महाभारत के युद्ध बाद हिन्दुस्तान की सभ्यता, संस्कृति और विद्या का जैसा ह्रास हुआ है, उससे यह सम्भावना बलवती बनी है | अणु अस्त्रों के युद्ध के बाद शायद मनुष्य यह प्रार्थना करेगा – हे भगवान ! हमें वही बना दो, जो हम पहले थे । यांत्रिकीकरण का परिणाम Jain Education International आज विज्ञान बढ़ते-बढ़ते रॉबोट तक पहुंच गया है। जिस कृत्रिम मानव का निर्माण किया गया है, वह रोवोट - - लोहमानव खतरनाक बन रहा है । निर्माता सोच रहें हैं कि उसे नियंत्रित कैसे किया जाए ? अमेरिका और जापान ने जो रोबोट बनाए हैं, वे मनुष्य के लिए विनाश का कारण बन रहे हैं। अगर यह शस्त्रीकरण और यांत्रिकीकरण का दौर ऐसे ही चलता रहा तो हमें प्रभु से प्रार्थना करनी पड़ेगी - हे भगवान ! हमें तो वापस प्रस्तर युग में ही ले चलो । शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन को पकड़ा था । भगवान से ही निःशस्त्रीकरण हम भगवान महावीर को पढ़ें, आचारांग के पढ़ें । हमें पता चलेगा, इस सचाई को महावीर ने महावीर ने कहा-शस्त्रीकरण मनुष्य जाति के लिए संहार का कारण बन सकता है । इसलिए हम प्रारम्भ का मूल्य आंकें, उसे समझें और जीवन में अधिक से अधिक निःशस्त्रीकरण का प्रयोग करें । निःशस्त्र के प्रयोग का अर्थ संयम करने से जुड़ा हुआ है । निःशस्त्रीकरण मानव जाति के लिए कल्याण का हेतु है, विकास का हेतु है । निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही मानव-जाति सुख और शांति से रह सकती है । इस सचाई को संयम के विकास से ही समझा जा सकता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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